श्रेष्ठ कार्य की जिम्मेदारी बोझ नही प्रभु प्रदत्त उपकार समझ कर ग्रहण करें : आर्यिका श्री105 वर्धस्व नंदनी जी

राजस्थान ! तिजारा में आर्ट ऑफ थिंकिंग के माध्यम से सिखाई जा रही जीवन जीने की कला श्री 1008 दिगंबर जैन चन्द्र प्रभु अतिशय क्षेत्र देहरा तिजारा में तप, त्याग,ध्यान, साधना, आराधना , का महापर्व चातुर्मास (वर्षायोग) समय से अपने व श्रावक – श्राविकाओं के मानवीय जीवन को सुधारते हुए सिद्ध शिला की ओर बढ़ने की सकारात्मक योजना से जुड़े जैनाचार्य श्री 108 वसुनंदी महाराज की सुशिष्या आर्यिका रत्न 105 वर्धस्व नंदनी माताजी ने आर्ट ऑफ थिंकिंग विषय को आगे बढ़ाते हुए श्रावकों से कहा कि इस संसार में कोई किसी का कर्त्ता नहीं है और वह स्वयं भी किसी का कर्त्ता नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति निमित्त तो बनता है किंतु यदि वह यह सोचता है कि वह किसी कार्य का कर्त्ता है तो वह भ्रम में है। अपने-अपने कर्मों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति फलों को प्राप्त करता है। अन्य जीव उसमें निमित्र मात्र होते हैं ।
आर्यिका माताजी ने कहा कि यदि आपके माध्यम से कोई श्रेष्ठ कार्य हो तो कभी अहंकार के शिखर पर मत चढ़ना, बल्कि उस श्रेष्ठ कार्य का श्रेय अपने परमात्मा को देना। उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना कि आप किसी अच्छे कार्य में निमित्त बन सके,उन्होंने यह श्रेष्ठ कार्य करने के लिए आपका चयन किया। आपको जो जिम्मेदारी मिली है उसे बोझ नही अपितु प्रभु प्रदत्त उपकार मान ग्रहण करना यही जीवन की सत्यता है। किंतु वर्तमान में गुणगान ,यशगान के फेर में ही व्यक्ति उलझ कर रह जाता है।
उन्होने कहा कि यदि आपके साथ कुछ बुरा हो तो विचार करना कि अपने पाप कर्म के उदय के कारण ही हमें दुख मिला है सामने वाला तो निमित्त मात्र है आपकी सोच आपको हर परिस्थिति में समान रूप से स्थिर रख सकती है।
संजय जैन बड़जात्या कामां ✍🏻

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