हड़कों औरंगाबाद में गुरुवर आचार्य श्री 108 कुशाग्रनंदी जी का 2024 का चातुर्मास तय
औरंगाबाद ! (देवपुरी वंदना) महामना आचार्य श्री 108 सम्राट श्री कुशाग्रनंदी जी गुरुवर ससंघ का वर्ष – 2024 का चातुर्मास शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर हड़को औरंगाबाद होने जा रहा है।
आचार्य ससंघ का 14 जून-2024 को महातीर्थ कल्याणमंदिरम् से दोपहर 3: बजे विहार होगा सभी बंधुजन आचार्य गुरुदेव के विहार में आकर पुण्यलाभ लेवे।
आचार्य सम्राट श्री 108 कुशाग्र नंदी जी महाराज का परिचय
दिनांक 13 जून 1967 मंगलवार के दिन श्रुतपंचमी पर स्व. श्री तवनाप्पा क्यादगे के घर में श्री अनंत कीर्ति क्यादगे का जन्म हुआ, जिन्हें आज सारा भारत आचार्य सम्राट श्री कुशाग्र नंदी की गुरुदेव के रूप में जानता है।
आपकी माता का नाम फुलावती था। हुपरी जिला कोल्हापुर में जन्मे अनंत कीर्ति क्यादगे के 2 भाई थे जिनके नाम बाहुबली एवं बालासाहेब थे । आचार्य श्री का जन्म एक धार्मिक और सरल परिवार में हुआ था, इसीलिए बचपन से ही उन्होंने साधू-संतों की सेवा, सत्य और अहिंसा की राह पर ही चले थे। 30 मार्च 1987 मात्र 18 वर्ष की अल्पआयु में उहोंने दीक्षा धारण कर आध्यात्मिक राह पर निकल गए।
उनकी योग्यता ओर पात्रता को ध्यान में रखते हुए जगद्गुरु गणधराचार्य श्रीं कुंथूसागरजी महाराज के द्वारा उन्हें 15 जनवरी 1995 में आचार्य पद से विभूषित किया। त्याग और तप के मार्ग पर, आचार्य श्री ने कठोर तपस्या के माध्यम से उनके भौतिक शरीर पर विजय प्राप्त कर अपार ज्ञान प्राप्त किया।
भगवान महावीर की अक्षुन्य परंपरा की पताका भारतवर्ष में लहराते हुए अपने त्याग तप और ज्ञान के माध्यम से पुरे मानवता को लाभान्वित कर रहें हैं। 14 जनवरी 1983 को आपने बाल ब्रह्मचारी के रूप में ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। आपने बुधवार 23 सितम्बर 1985 को विजयादशमी के दिन ऐलक दीक्षा ग्रहण करी। रविवार 30 मार्च 1986 रंगपंचमी के दिन आपकी मुनि दीक्षा ऐनापुर कर्नाटक में हुई। आपके दीक्षा गुरु गणाधिपति श्री कुन्थु सागर जी महाराज थे।
पूज्य गुरुदेव को अभी तक विभिन्न पदवियों से विभूषित किया जा चुका है।
दिनांक 5 जून 1992को नैनवा (राज.) में आपको बालयोगी पद से विभूषित किया गया। 24 जनवरी 1993को महितपुर (म.प्र.) में विद्याधिपति, 13 नवम्बर 1993को चम्पावती नगर मे संस्कार रत्न, 21 नवम्बर 1996 को अतिशय योगी, 14 जनवरी 1995को आचार्य कल्प, 17 अक्टूबर 1995को युवाचार्य, 21 नवम्बर 1996 को आचार्य सम्राट, 6 फरवरी 1997को वात्सल्य रत्न, 30 मार्च 1997 को धर्म केशरी, 20 अप्रैल 1997को ज्ञान महर्षि, 18मई 1997 को राष्ट्रीय गौरव, 10 नवम्बर 1997 को तपश्वी रत्नाकर, 27अप्रैल 1998को भरत भूषण 27 जनवरी 1999 को दिव्या पुण्य पुरुष, 21 अगस्त 1999 को कलियुग श्रवणकुमार, 29 अक्टूबर 2001को बुद्धि साम्राज्य, 14 जनवरी 2001को प्रज्ञा श्रमण पदवी से विभूषित किया गया। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी के साथ ही अनेको भाषाओं के ज्ञाता भी है। आपको मराठी कन्नड़ , हिंदी, राजस्थानी, संस्कृत, प्राकृत, अर्धमागधी, मारबाड़ी, गुजराती, उर्दू, अंग्रेजी, तुलू, मलयालम, मेवाड़ी, बघेली, बुन्देली, बिहारी, छत्तीसगढी आदि अनेक बोली व् भाषाओं का ज्ञान है। आपकी लगभग 25 पुस्तके विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है – महातपस्वी देवश्रमण आचार्य सम्राट श्री कुशाग्रनंदीजी की ऐतिहासिक तपस्या
समशरण व्रत के उपवास 24 उपवासपंचकल्याण व्रत के 120 उपवासभक्तामर व्रत के 51 उपवासकल्याणमंदिर व्रत (3बार) के 45 उपवासऋद्धि- सिद्धि व्रत के 64 उपवास15 वर्षों से प्रतिवर्ष सोलहकारण के 16 निर्जल उपवास प्रतिवर्ष अष्ठान्हिका पर्व के तीनो अठाई के कुल 24 निर्जल उपवास.सिंह-निष्क्रिडित व्रत जिसमे 256 उपवास और मात्र 31 आहार वह भी दूध और जल ग्रहण किया। सिंह-निष्क्रिडित व्रत पूर्ण करने वाले 21वी सदी के प्रथम आचार्य है।
विशेष :- सिंह निष्क्रिडित व्रत के 256 उपवास के उपरान्त पारना हुआ तो लोगो ने अनेकों अतिशय देखे जहाँ लोगो के ऊपर, गाड़ियों, मण्डप आदि स्थानों पर केसर की वृष्टि हो रही थी।