नये वर्ष में आओ नया करें ::: ‌ नजर बदलकर नजारे बदलें

-जर्नलिस्ट डा.अखिल बंसल, जयपुर

 

भुला दो बीता हुआ कल
दिल में बसालो आने वाला कल
परिस्थितियां कैसी भी विपरीत हों
हंसो और हंसाते रहो प्रतिपल
निश्चित ही खुशियां लेकर
आएगा आने वाला कल।।
समय चक्र बहुत तेजी के साथ घूम रहा है। समय के साथ हमारी परंपराएं, हमारी रीति नीति, हमारे रीति रिवाज, हमारी धारणाएं, हमारा रहन-सहन सभी में आमूलचूल परिवर्तन स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है । हमारे पूर्वज धवल वस्त्रों में धोती कुर्ता और सिर पर टोपी या पगड़ी पहने दिखाई देते थे। फिर कुर्ते पजामे का चलन हुआ और अब जींस टीशर्ट का प्रचलन है । सिर पर पगड़ी टोपी सब गायब हैं। स्त्रियों के पहनावे व रहन-सहन में भी स्पष्ट परिवर्तन दिखाई दे रहा है। नई पीढ़ी की बहू बेटियां साड़ी नहीं अपितु टाइट जींस और कुर्ती में दिखाई देने लगी हैं। बच्चे भी अब खिलौनों से नहीं मोबाइल से प्यार करते हैं । खान-पान में भी सत्तू मन भत्तू नहीं बच्चों को मैगी चाहिए । कहने का तात्पर्य है सब कुछ समय के साथ बदल रहा है।
बदलते हुए इस युग में नई पीढ़ी धर्म से विमुख होती जा रही है । उसकी नजर में धर्म करना माता-पिता का काम है । आज कंप्यूटर का युग है ; आज के बच्चे बचपन से ही कंप्यूटर में इतने मशगूल रहते हैं कि वे धार्मिक क्रिया-कलापों से कोसों दूर हो डीजे पर थिरकने में शान समझते हैं । जो महिलाएं पहले घर की देरी से बाहर नहीं निकलती थीं वे अब आसमान में उड़ रही हैं; हवाई जहाज उड़ा रही हैं। सेना में शीर्ष तक पहुंच चुकी हैं।ऐसी कोई जगह नहीं जहां महिलाओं का दखल ना हो।
संसार का प्रत्येक व्यक्ति आज शांत और हताश दिखाई दे रहा है। कमाई खूब बढ़ गई है, आमोद प्रमोद के साधनों की भी कोई कमी नहीं है; फिर भी जीवन दूभर सा लगता है । जीवन जीना भी एक कला है इस कला से युवा पीढ़ी अनभिज्ञ है । यदि कामयाबी पाना है तो जीवन जीने की कला सीखना आवश्यक है । प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का समावेश रहता है। अनुकूलता में हम खुश और प्रतिकूलता में हम दुखी हो जाते हैं । जबकि दिन-रात, अंधकार- प्रकाश, प्रतिकूलता -अनुकूलता, सुख-दुख यह सभी जीवन के अनिवार्य अंग हैं और प्रत्येक के जीवन में क्रमशः आते जाते रहते हैं। जीवन की सभी परिस्थितियों में व्यक्ति को धैर्य रखना चाहिए । जो आया है उसका जाना भी सुनिश्चित है यह जानते हुए भी हम मृत्यु से घबराते हैं। सब यह भी जानते हैं कि जो होना है वह निश्चित है हम उसमें कुछ भी रंच मात्र फेरफार नहीं कर सकते फिर भी हम परिस्थितियों से सामना करने में सकुचाते हैं। तनिक भी विपरीत परिस्थितियों में घबरा जाते हैं और आत्महत्या जैसा जघन्य पाप तक कर बैठते हैं। जीवन में वही कामयाबी पा सकते हैं जो हर स्थिति में जीना जानते हैं । कविवर जयशंकर प्रसाद की निम्न पंक्तियां सटीक हैं-
वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या
जिस पथ पर बिखरे शूल न हों
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या जब धाराएं प्रतिकूल न हों
अनुकूल परिस्थितियों में तो सब सुख का अनुभव करते हैं असली परीक्षा तो व्यक्ति के जीवन में तब होती है जब प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर संकट की घड़ी का सामना कर संतुष्ट रहे।
प्रसिद्ध दार्शनिक और चिंतक ओशो ने कहा है- जीवन ठहराव और प्रगति के बीच एक संतुलन है। जब कोई भी व्यक्ति तनाव ग्रस्त होता है तो वह नाना प्रकार के उपक्रम तनाव कम करने के लिए करता है। वह कुछ न कुछ ऐसे कामों में संलग्न हो जाता है जिससे एकाकीपन दूर हो। परन्तु क्या किसी ने कभी सोचा है बाहरी साधनों से एकाकीपन दूर नहीं होता और न ही मानसिक संताप दूर होता है। ऐसे समय में तत्व चिंतन और आत्मसाधना ही ऐसा अमोघ शस्त्र है जो एकाकीपन दूर कर शांति प्रदान कर सकता है। जब मन की आकुलता व्याकुलता समाप्त हो जाएगी तो परिस्थितियां भी स्वमेव अनुकूल हो जाऐंगी। कहने का आशय है नजर बदलते ही नजारे बदल जाएंगे।किसी ने कहा भी है–
नज़रें तेरी बदली तो नजारे बदल गये
किश्ती ने बदला रुख तो किनारे बदल गये।
सोचने वाली बात यह भी है कि हमने आधुनिकता के नाम पर प्रगति तो खूब की , विकास भी खूब किया; लेकिन किसके लिए यह भूल गए ! हमने प्रगति की थी सुकून के लिए , सुख के लिए शांति के लिए ; हमें प्रगति तो मिली पर शांति की कीमत पर , सुकून और सुख की कीमत पर।
ऐसी प्रगति निरर्थक है । सार्थक प्रगति वह है जो अपने साथ सुख शांति और सुकून लाए।
आशा है हम नये वर्ष में इस ओर भी दृष्टिपात करेंगे।

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