आज जैन समाज को ऐसे सजग व सटीक संतो की अत्यंत आवश्यकता है !

 

इंदौर ! ( देवपुरी वंदना ) आज जैन समाज की गिरती साख से कोई अनजान नहीं है । क्योंकि आज जैन समाज के कर्ता-धर्ता कहे जाने वाले महत्वकांक्षी समाजसेवी सफेद पोषाक पहने‌ श्रमण संस्कृति के कंधों पर अपने नाम पद व वर्चस्व की बंदूक रख कर तीर्थ क्षेत्रों के साथ सभी धर्मायतनो पर अपनी मनमानी करते हैं व श्रावक – श्राविकाओ को द्वारा उनकी भावनाओं के दान का दुरुपयोग करते रहते हैं और जब कहीं कोई उनकी इस बात का विरोध करते हैं या श्रावक – श्राविकाओ को बताते हैं तो कहते हैं आचार्य श्री या साधु संतों को पता है उन्होंने ही बोला कि ऐसा करो जब कोई कमेटी साधु संतों का नाम ले लेती है तो फिर आम जनमानस कुछ नहीं कर पाता जिससे कोई अनभिज्ञ नहीं है।
अपने कुल गोत्र परिवार से मिली संस्कार संस्कृति को ताक में रखते हुए महत्वपूर्ण पैतृक संपत्ति के दुरुपयोग से अपना वर्चस्व कायम रखते हैं चाहे इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े
आज हम किस ओर जा रहे हैं उसका वर्णन करना कोई बड़ी बात नहीं है सभी जानते हैं । फिर भी समाज में चल रहे दृष्टांत को देखते हुए समाज के सूत्रधार या मार्ग प्रदर्शक आज सिर्फ अपना भव सूधारने की बात कह कर इतिश्री कर लेते हैं वह सिर्फ आज राजनेताओं या व्यक्ति विशेष से चर्चा कर धर्म समाज को कौन सी राह दिखाते हैं यह साधारण आम समाज जन जानता है मगर समाज में आज भी ऐसे सजग जागरूक श्रमण संस्कृति विराजमान है जो निष्पक्ष अपनी बात रखते हैं आज हमें हमारे समाज में ऐसे संतों की अत्यंत आवश्यकता है। माना उनकी क्रांति से सभी समाज सेवी अपने मस्तिष्क मैं चल रहे हैं उथल-पुथल को नहीं शांत कर सकते मगर एक संत अपना सामाजिक, धार्मिक दायित्व निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे ।

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