20 जुलाई को ‘पारड़ा’ ईटीवार में वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री 108 कनक नंदी जी का आध्यात्मिक वर्षायोग-2024 कलश स्थापना
डूंगरपुर ! (देवपुरी वंदना) 21वी सदी में भी दिगंबर जैनाचार्यों के पूर्ण सादगी व निस्पृहता सशक्त हस्ताक्षर महासागर के समान व्यापक,सूर्य के समान तेजस्वी,धरती के समान धीर गंभीर पूज्यवर वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुराज जो की वर्तमान आध्यात्म -दर्शन -विज्ञान के अथाह ज्ञान कोष भंडारी है।
पूज्य आचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुदेव जो की सर्वाधिक भाषाओं के ज्ञाता,सर्वाधिक आचार्यों ,सर्वाधिक श्रमणों व सर्वाधिक अति उच्च शिक्षाविदो के शिक्षा गुरु है,जिन आत्म तत्व व आध्यात्म विज्ञान जिज्ञासु को कही भी समाधान नहीं दिख पता ऐसे में इस धरा पर विराजमान कुछ ही विशेष समाधन कर्ताओ में से सबसे दक्ष गुरु के रूप में आप जग विख्यात है। आप वर्तमान में विराजित संतो में से सबसे वरिष्ठ ज्येष्ठ द्वय आचार्य में से एक गणाधिपति गणधराचार्य श्री 108 कुंथुसागर जी ऋषिराज के सबसे ज्येष्ठ व श्रेष्ठ शिष्य है,आपको आपके गुरु हमेशा श्रमण रत्नों का हीरा, कलिकाल अकलंक व समंतभद्र कहते है।
जैन दर्शन की ज्ञान स्वाध्याय साधना को आप विश्व के सर्वोच्च शिखर पर गौरवान्वित कर रहे है।
इतने विलक्षण,दुर्लभ व महान गुणों की खान होते हुए भी आप अत्यंत सादगी,निस्पृहता,सरलता व सहजता से परिपूर्ण है ये बहुत बड़ा आश्चर्य है,आपकी निस्पृहता व निराडम्बरता को इस दुनिया में कोई भी चुनौती देने में असक्षम है।आपने राजस्थान के आसपुर के निकट छोटे से गांव पारडा ईटीवार की जैन समाज व युगल पंडित बंधुओ को वर्षायोग की स्वीकृति देते समय सादगी के अनेक संकल्प दिलाएं है जैसे:-
मंगल प्रवेश हो या विहार कोई धूम धड़ाका नही करना,कोई हाथी, घोड़ा या बग्गी नही लाना,न ही बड़े बड़े गेट लगाकर अपव्यय करना पूरे वर्षायोग में कभी भी बड़े बड़े पांडाल,विशाल महंगे मंच नही बनाना कोई होर्डिंग,बोर्डिंग, निमंत्रण पत्र पत्रिकाएं नही छपवाना, सिर्फ मोबाइल के माध्यम से सूचना
वर्षायोग कलश,पदपक्षालन,शास्त्र भेट व पिच्छी परिवर्तन आदि अन्य किसी भी तरह की बोली या नीलामी नही करना व मेरी जन्म जयंती हो या दीक्षा जयंती कोई भी धूम धड़ाका आयोजन नही करना,सिर्फ मुझसे आपने क्या सीखा,क्या पाया,और क्या छोड़ा इसका गुरु संघ के सामने सत्यता पूर्वक बखान करना पंथवाद मतवाद व संत वाद से परे होकर चाहे श्वेतांबर हो या दिगंबर, चाहे 13 हो या 20 सब आपसी स्नेह के साथ मिलजुलकर ज्ञानमृत रस अर्थात मां जिनवाणी का दुग्धपान करना, मुझे न कोई तीर्थ गिरी बनवाना है, और न ही मेने किसी भी प्रकार के चंदे चिट्ठे की अपने साधक जीवन में याचना की है न ही इसकी प्रेरणा दी है,मुझे तो हर जीव को प्राणी से परमात्मा,जीव से जिनेद्र,कंकर से शंकर रूपी जीवंत तीर्थ बनाने है।
मै अपना पट्ट सिंहासन भी छोड़कर कर सादे पाटे पर विराजता हु क्योंकि मुझे किसी पट्ट या सिहासन से नही बधना मुझे तो सिद्ध पद तक की यात्रा करनी है। गुरु संघ का पूरा वर्षायोग इतना सादा व सरल होना चाहिए की किसी गांव में मात्र एक जैन परिवार ही हो तो वो भी सहजता पूर्वक श्री संघ का वर्षायोग सेवा कर सके।आचार्य श्री कनकनंदी जी गुरुदेव जो की बिना किसी प्रपंच के एक अत्यंत सामान्य निमंत्रण पर ही वर्षयोग की स्वीकृति प्रदान कर देते है,वे कहते है की आजकल बसों में भर भर कर निमंत्रण देने आते है फिर साधु के वहा जाने पर धर्म की हर क्रिया में बोली व नीलामी की जाती है,धर्म सभा का ज्यादातर समय बोली व मान सम्मान में व्यर्थ कर दिया जाता है जहा आत्म दर्शन तो शून्य ,प्रदर्शन सौ प्रतिशत होता है।
इसलिए पूज्य आचार्य श्री 108 कनकनंदी जी गुरुदेव अपने संघ सहित समस्त प्रवास एकांत जंगल स्थलो पर या छोटे छोटे गांवो में ही करते है जहा उनकी प्रतिज्ञाओ की पूर्ण पालना हो।
आचार्य श्री की ऐसी अटल निस्पृह संकल्पो को जानकर श्री योगेंद्रगिरी तीर्थ क्षेत्र समिति ने पूज्य गुरुदेव को वर्षायोग समय को छोड़कर अन्य सभी प्रवास जीवन पर्यंत अपने क्षेत्र में करने का निवेदन कई बार कर चुके है। इसी को ध्यान में रखकर आचार्य श्री का समस्त साहित्य भंडार सहजने के लिए योगेंद्रगिरि पर विशाल जिनवाणी आलया बनाया गया है।
आचार्य श्री 108 कनकनंदी जी महाराज का संक्षिप्त परिचय :-
जन्म का नाम :- श्री गंगाधर प्रधान
जन्म स्थान :- उत्कल, ब्रहमपुरी, उड़ीसा
माता का नाम :- श्रीमती रुकमनी देवी
पिता का नाम :- श्री मोहनचन्द्र प्रधान
क्षुल्लक दीक्षा :- 1978 पपौरा टीकमगढ़ म.प्र.
मुनि दीक्षा तिथि :- 05/11/1981
दीक्षा गुरु :- गणाधिपति श्री 108 कुन्थु सागर जी महाराज
मुनि दीक्षा स्थल :- श्रवणबेलगोला, कर्नाटक
उपाध्याय पद तिथि :- 25/11/1982 हासन कर्णाटक
आचार्य पद तिथि: 24 अप्रैल 1997 उदयपुर (राज)
आचार्य श्री 108 कनकनंदी जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व
क्षुल्लक दीक्षा- अतिशय क्षेत्र पपौराजी (टिकमगढ) मध्यप्रदेश (सन् 1978) मुनि दीक्षा 5 फरवरी 1981 (श्रवणबेलगोल कर्णाटक) दीक्षा प्रदाता गुरु- पूज्य गणधराचार्य श्री कुन्थुसागर जी शिक्षाप्रदात्री प्रमुख गुरू- पू.ग. विजयामति माताजी उपाध्याय पद- 25 नवम्बर 1982 हासन (कर्नाटक) आचार्य पदवी- 23 अप्रैल 1996 उदयपुर (राज.)। प्रशिक्षित सुयोग्य श्रमण शिष्य समूह- पू. आ पद्मनन्दी आ.देवनन्दी, आ.कल्प श्रुतनन्दी, आ. करूणानन्दी, आ. कुशाग्ननंदी, आ.गुप्तिनंदी, उपाध्याय विद्यानंदी, उपा. कनकोज्ज्वलनंदी (श्रुतसागर), मु. आज्ञासागर मुनि. आध्यात्मिक मुनि श्री108 सुविज्ञसागर जी।
आर्यिकाएँ-राजश्री, क्षमा श्री, आस्था श्री, ऋद्धि श्री, सुवत्सलमती, सुनिधिमती, सुनीतिमति, क्षु. 105 सुवीक्षमती, शांती श्री, श्रेयांस श्री।
गृहस्थ शिष्य-डॉ. प्रो. स्व. प्रभातजी, डॉ. प्रो. स्व. सुशीलजी, डॉ. एन.एल. कछारा, डॉ. पी.एम अग्रवाल, डॉ. एस.एल गोदावत, डॉ. सोहन राज तातेड जी, डॉ. जीवराज जी, डॉ. राजमल जैन (इसरो) (महासभा के वर्तमान उपाध्यक्ष), डॉ. सुरेन्द्र सिंह पोखरना (इसरो), डॉ. बी. एल सेठी (गुरुदेव के साहित्य पर पी.एच.डी. डिलीट के निर्देशक)
प्रख्याति-प्रखर प्रज्ञाधनी, मार्मिक प्रवचन एवं अनुशासन प्रिय, जैन-जैनेतर बच्चों, किशोर-किशोरियों, युवक-युवतियों के प्रशिक्षण दाता, बच्चे जिनको प्रिय तथा उनसे आहार लेने वाले, जैन-जैनेतर प्रबुद्ध वर्ग के लिए आदर्श ज्ञानी साधक। चंदा चिट्ठा तथा सामाजिक द्वन्द्व-फंद से दूर, शांत-समता, निस्पृह- निराडम्बर साधक सक्रिय गति विधियाँ-साहित्य पूजन, श्रमण संघों का अध्यापन, प्रशिक्षिण शिविर, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी, स्व-शिष्य एवं इन्टरनेट के माध्यम से धर्मदर्शन विज्ञान का प्रचार-प्रसार, निस्वार्थ रूप से विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत जैन अजैन समाज सेवकों संस्थान/संगठनों को उपाधी प्रदान है।
विस्तृत जानकारी के लिए संपर्क करें :- श्री बीसा नरसिग पुरा दिगंबर जैन समाज पारड़ा ईटीवार तहसील आसपुर जिला – डूंगरपुर ( राजस्थान)
पंडित कीर्ति कुमार जैन
मो.न. 8369392288, मो.न. 8007446162