जगदगुरु स्वस्ति श्री चारु कीर्ति भट्ठारक स्वामी जी का 75वें जन्म जयंती महोत्सव के लोगो (प्रतीक चिह्न) का विमोचन

इंदौर ! (देवपुरी वंदना) उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक अंतरराष्ट्रीय जैन जगत में यदि कोई थे तो वे परम पूज्य जगदगुरु कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारु कीर्ति जी भट्टारक महास्वामी जी श्रवणबेलगोला का नाम ही सर्वप्रथम आता है जो कि अपने कार्य के प्रति दृढ़ संकल्पित निष्ठावान तो सदैव रहे ही साथ ही साथ इस धरती के सभी प्राणी मात्र के लिए तत्पर सेवा के लिए हर वक्त अग्रसर रहे ऐसे स्वामी जी का जन्मदिवस 3 मई 1949 को कर्नाटक के क्षेत्र वार॑ग में हुआ था ! जैन समाज के हृदय स्थल इंदौर शहर स्थित क्लर्क कॉलोनी में विराजित अंतर्मुखी मुनि श्री108 पूज्य सागर जी के आशीर्वाद व सानिध्य में श्रीफल मीडिया परिवार की ओर से स्थानीय क्षेत्रीय श्रावक श्राविकाओं के मध्य दृढ़ संकल्पित होकर महा स्वामी जी का 75 वा॑ जन्म महोत्सव वर्ष भर मनाया जाएगा जिसमें वर्ष भर समय व स्थिति अनुसार स्वामी जी की भावना अनुरुप सामाजिक, धार्मिक शैक्षणिक‌, स्वास्थ्यप्रद लाभ व मानव पशु – पक्षी सेवा, श्रमण संस्कृति के रक्षार्थ सुविधा अनुरूप कार्य, समाज के श्रेष्ठी वर्ग, विद्वान,पंडित डॉक्टर, सी.ए., संपादक, पत्रकार जैसे विभिन्न आयामों में अपनी सहभागिता निभा रहे जैन समाज के श्रावक श्राविकाओं के मध्य संगोष्ठी के साथ अनेकों आयोजन किए जाएंगे ।

मन मस्तिष्क के पटल से स्वामी जी का जन्म: 3 मई 1949

तीर्थक्षेत्र: वारंग कर्नाटक

जन्मनाम: रत्न वर्मा

श्रावक श्रेष्ठ श्री मती कांते श्री चंद्रराज के घर शुभ नक्षत्र, शुभ बेला में जन्म। धार्मिक संस्कार हेतु हुमचा मठ में अध्ययन हेतु प्रवेश। श्रवणबेलगोला तीर्थ के भट्टारक जी पूज्य श्री भट्टकलंक जी को अपने उत्तराधिकारी की आवश्यकता अनेकों कुण्डलियों में रत्न वर्मा के प्रतिजगा विश्वास 12 दिसम्बर 1969 में भट्टारक दीक्षा 19 अप्रैल 1970 को वर्तमान शासन नायक भगवान महावीर जन्म कल्याणक अवसर पर श्रवणबेलगोला श्री क्षेत्र के उत्तराधिकार के रूप में पट्टाभिषेक आर्थिक रूप से अति विपन्न श्रवणबेलगोला तीर्थ को समुन्नत बनाने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी मात्र 20 वर्ष की उम्र में तीर्थ पर आर्थिक बैलेंस नहीं, सुविधाएँ नहीं ऐसे अवसर पर 20 वर्षीय युवा पर आई अनेकों जिम्मेदारियाँ पहले अध्ययन करने का निर्णय देश के श्रेष्ठ विद्वानों, आचार्यों के साथ जैनदर्शन का अध्ययन जैन धर्म के ज्ञाता बन 1976 में सिंगापुर की यात्रा कर धर्म प्रभावना। अमेरिका, वर्मा, अफ्रीका, इंग्लैंड,  थाईलैंड में धर्म प्रभावना।
लौकिक पढ़ाई मे अव्वल मैसूर विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में मास्टर ऑफ आर्ट किया जैसा कि विभिन्न पुस्तकों में विभिन्न सोच वाले लेखकों के विचार पढ़ने को मिले।

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