पारसोला राजस्थान जैन समाज के खुले भाग्य

राजस्थान (देवपुरी वंदना) ! बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य 108 श्री शांति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण पट्ट परंपरा के पंचम पट्टाधीश, राष्ट्र गौरव, वात्सल्य वारिधि, वर्तमान के वर्धमान आचार्य शिरोमणि 108 श्री वर्धमान सागर जी महाराज ससंघ का आगामी 2024 का वर्षायोग धर्म नगरी पारसोला (राजस्थान) में होगा। श्री 1008 भगवान आदिनाथ के जन्म एवं तप कल्याणक के पावन अवसर पर आयोजित सभा में आचार्य श्री द्वारा वर्षायोग के पारसोला में करने की घोषणा की गई। देश का मध्य भाग, मध्यप्रदेश कई परम संतों की भूमि रही है। मध्यप्रदेश के खरगौन जिले में सनावद में पैदा हुए बालक यशवंत, कैसे संयम, तपस्या के मार्ग पर चलते हुए हमारे वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 श्री वर्धमान सागर जी बन गए । सनावद, ऐसी पावन धरा, जिसमें जैन धर्म को अनेक संतों ने आध्यात्मिकता का अद्भुत माहौल दिया है इसी माहौल के बीच पवित्र नगरी सनावद में पर्युषण पर्व के तृतीय उत्तम आर्जव दिवस पर माता श्रीमती मनोरमा देवी जैन और पिता श्री कमल के घर एक होनहार पुत्र का जन्म हुआ। मगर विधि का विधान ऐसा हुआ कि केवल 12 साल की आयु में आपकी माताजी का असामयिक निधन हुआ। संभवत, यह पहला अवसर था जब आचार्य श्री के मन में वैराग्य भाव का प्रस्फुटन हुआ।
आचार्य श्री 108 विमल सागर जी महाराज, आचार्य श्री 108 महावीर कीर्ति जी महाराज, तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री 108‌धर्म सागर जी महाराज के दर्शन का उनके बाल मन पर प्रभाव पड़ा। सन 1967 में श्री मुक्तागिर सिद्ध क्षेत्र में आर्यिका श्री105 ज्ञानमति माताजी से आजीवन शूद्र जल त्याग और 5 वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत लिया। जनवरी 1968 बागीदौरा राजस्थान में आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया। ग्राम करा वली में सर्व प्रथम आचार्य श्री शिव सागर जी के दर्शन किये। सनावद वासीयो के साथ श्री गिरनार जी एवम बुंदेलखंड की तीर्थ यात्रा कर। बालक यशवंत वापस सनावद आ गए। सन 1968 को श्री बालक यशवंत वापस सनावद आ गए। सन् 1968 को श्री यशवंत पुनः ग्राम पालोदा में आचार्य श्री शिव सागर जी के दर्शन हेतु गए। गृह त्याग मई 1968 से आप संध में शामिल हो गए । भीमपुर जिला डूंगरपुर में आपने द्वितीय पट्टाधीश आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज से गृह त्याग का नियम लिया । बाल ब्रह्मचारी श्री यशवंत जी ने मात्र 18 वर्ष की उम्र में फागुन कृष्णा चतुर्दशी संवत 2025 सन 1969 को श्री महावीर जी मे आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज को मुनि दीक्षा हेतु श्रीफल चढ़ा कर निवेदन किया। तृतीय पट्टाधीश नूतन आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज ने श्री महावीर जी मे फागुन शुक्ला 8 संवत 2025 24 फरवरी 1969 को 6 मुनि 3 आर्यिका तथा 2 क्षुल्लक कुल 11 दीक्षाएं आपके सहित दी और अब ब्रह्मचारी श्री यशवन्त मुनि दीक्षा धारण कर मुनि श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज बन गए ।

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