दिल्ली में 21 वर्षों के पश्चात पुन:दो श्रमण संस्कृति के रक्षार्थो गुरु भाइयों का महा मिलन हुआ
दिल्ली!( देवपुरी वंदना) भारत की राजधानी दिल्ली शहर के श्री 1008 दिगंबर जैन मंदिर कृष्णा नगर में श्रमण संस्कृति के रक्षार्थ आचार्य शिरोमणि श्री 108 विशुद्ध सागर जी मुनिराज एवं श्वेतपिच्छाचार्य श्री 108 विद्यानंद जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य अंतेवासी परम्पराचार्य श्री 108 प्रज्ञसागर जी महाराज का 21 वर्षों के बाद पुनः महा मिलन हुआ इस ऐतिहासिक अविस्मरणीय क्षण का हजारों श्रावक बंधुओ ने सुनहरे पल के साक्षी बन पुण्य लाभ लिया आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी सम्यकदर्शन, ज्ञान और चारित्र ही मोक्षमार्ग है। ऐसी बात को बहुत सरल रुप से बताने वाले आचार्य भगवन्त प.पू. आध्यात्म योगी 108 श्री विशुद्ध सागर जी महाराज यथा नाम तथा गुण रुप है। जैसा नाम है, वैसा ही आचरण है। आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज को तत्वो का इतना गहन चिन्तवन है कि जिनवाणी उनके कण्ठ मे विराजमान रहती है। आचार्य श्री के प्रवचन इतने सरल व स्यादवाद से भरे होते है कि हमारे अष्टमूल गुण तो क्या, अणुव्रत और महाव्रत तक लेने के भाव हो जाते है। इनके प्रवचन मे स्यादवाद व अनेकान्त रुपी शस्त्र से मिथ्यात्व का शमन तो सहज ही झलकता है।
प्रवचन सुनकर ऎसा लगता है कि हमारे ही बारे मे बात कही जा रही हो। आचार्य श्री के बारे मे जितना कहे कम है, हे गुरुवर, आचार्य भगवन्त नमोस्तु शासन को सदा जयवतं रखे। परम पूज्य आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज के बचपन से प्रारंभिक क्रियाऐ उनके भविष्य में वैराग्य की और बढ़ते क़दमों का संकेत दे रही थी। उनका विवरण निम्न प्रकार से है।
बचपन से ही जिनालय जाना:- महाराज श्री अल्पायु से अपने पिता जी श्री रामनारायण जी एवं माता जी श्रीमती रत्ती देवी एवं अपने अग्रजों के साथ प्रतिदिन श्री जिन मंदिर जी दर्शनों के लिये जाने लगे थे।
रात्रि भोजन एवं अभक्ष्य वस्तुओं का त्याग:-लाला राजेंद्र (आचार्य श्री का बचपन का नाम) ने 7 वर्ष की अल्पायु में श्री जिनालय में रात्रि भोजन का त्याग एवं अभक्ष्य वस्तुओं के त्याग का नियम ले लिया था और उसका पालन भली प्रकार से किया ।
सप्त व्यसनों का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन:- लला राजेंद्र जब 8 वर्ष के थे तभी से उन्होंने सप्त व्यसन का त्याग एवं अष्ट मूल गुणों का पालन करना प्रारंभ कर दिया था।
बिना देव दर्शन भोजन न करने का नियम:- लला राजेंद्र ने 13 वर्ष की अल्पायु में तीर्थराज श्री दिग. जैन सिद्ध क्षेत्र शिखर जी में बिना देव दर्शन के भोजन न करने का नियम ले लिया था ।
स्वत: ब्रहमचर्य व्रत अंगीकार :- अल्पायु में लला राजेंद्र ने अपने ग्राम रुर के जिनालय में भगवान् के समीप स्वयं ही ब्रहमचर्य व्रत ले लिया था । अनेक तीर्थ क्षेत्रों की वंदना करने का सौभाग्य :- राजेंद्र लला ने अपने पिता जी माता जी एवं अनेक परिवार जनों के साथ बचपन से ही शिखरजी,सोनागिरी जी,एवं अनेक तीर्थ क्षेत्रों के दर्शन करने एवं वह विराजमान पूज्य महाराजों के दर्शन करना भी उनके वैराग्य का एक बिंदु है। परमपूज्य गुरुवर 108 मुनि श्री विराग सागर जी महाराज के प्रथम दर्शन अपनी बहन के यहाँ नगर भिंड में सन 1988 में प्रथम बार किये ।उनके प्रवचन और दर्शन से राजेंद्र लला के मन में वैराग्य कके बीज अंकुरित होने लगे। जैन धर्म की पुस्तकों का अध्ययन ,मनन ,चिंतन :- राजेंद्र भैया बचपन से ही ग्रथों का अध्ययन करके उन पर मनन एवं चिंतन करने लगे थे ,जो उनके वैराग्य की और बढ़ने का एक माध्यम बना।
भिंड में आदरणीय संयमी महानुभावों से भेंट :- जैन मंदिर भिंड में आदरणीय पं. मेरु चन्द्र जी (परमपूज्य मुनिश्री विश्व कीर्ति सागर जी महाराज) वर्तमान में समाधिस्थ एवं बाल ब्र. श्री रतन स्वरूप श्री जैन (वर्तमान में आचार्य श्री विनम्र सागर जी महाराज) से मुलाकात भी भैया राजेंद्र के पथ पर बढ़ने में सहायक हुई। परम पूज्य गुरुवर श्री का वर्ष 1988 का भिंड में वर्षा योग :- पूज्य मुनि श्री 108 विराग सागर जी महाराज का 1988 में पवन वर्षा योग भिंड नगर में हुआ ।भैया राजेंद्र उस अवधि में अपनी बहन के यहाँ भिंड में रहकर पूज्य गुरुवर के संघ में आते रहते थे।इस से लम्बे समय तक गुरुवर का सानिध्य मिला उनके प्रवचन का भी प्रभाव पड़ा ।जिस से उनका मन विराग सागरजी में चरणों में रम गया और वे संघ में ही रहने लगे और वह से विहार करने पर संघ के साथ विहार भी किया।
ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करना:- श्री राजेंद्र भैया पूज्य गुरुवर मुनि श्री 108 विराग सागर जी के साथ विहार करते हुए अतिशय क्षेत्र बारासों पधारे ।यद्यपि राजेंद्र ने रुर नगर में जिनालय के सामने दीपावली के दिन ब्रह्मचर्य व्रत के लिया था फिर भी यहाँ गुरुवर के समीप दिनांक 16 नवम्वर को 17 वर्षकी उम्र में ब्रहमचर्य व्रत पुन: अंगीकार किया।
ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर अभिषेक करना:- 1988 में एकांत मे ब्रह्मचर्य अवस्था में नग्न होकर भगवान् का अभिषेक किया था जो उनके भविष्य का संकेत दे रहा था।
क्षुल्लक दीक्षा:- राजेंद्र भैया ने आचार्य विराग सागरजी के कर कमलो से दिनांक 11अक्टूबर 1989 को भव्य क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की।उनका नाम रखा गया क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी इस समय इनकी आयु 18 वर्ष की थी।
ऐलक दीक्षा:- परम पूज्य क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी ने आचार्य विराग सागरजी के कर कमलो से 2 वर्ष बाद दिनांक 19 जून 1991 को भव्य ऐलक दीक्षा पन्ना नगर मे ग्रहण की।
मुनि दीक्षा:- ऐलक दीक्षा के 6 माह बाद ही परम पूज्य ऐलक श्री यशोधर सागर जी ने 20 वर्ष की आयुमे अपने गुरुवर से श्रेयांस गिरी में भव्य मुनि दीक्षा ग्रहण की,नाम रखा गया मुनि श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज ।
आचार्य पदारोहण:-परम पूज्य मुनि श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज को परम पूज्य आचार्य श्री 108 विराग सागर जी के कर कमलो से 31 मार्च 2007 को मुनि दीक्षा के 15 वर्ष 6माह बाद 35 वर्ष की आयु में दिनांक 31मार्च 2007 को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया।
श्री दिगंबर जैन समाज कृष्णा नगर दिल्ली
श्री दिगंबर जैन महिला समाज कृष्णा नगर दिल्ली का इस ऐतिहासिक अविस्मरणीय दिन का बहुत-बहुत सहयोग रहा।