मुनि श्री का नाम निष्पक्ष सागर जी और काम पक्षपात का ऐसा क्यों ?
इंदौर!( देवपुरी वंदना ) इतिहास गवाह है कि संत जनाधार स्वयं की आत्म कल्याण व श्रावको के कल्याण की राह पर चलने व राह दिखाने के कार्य करते हैं मगर आज प्रायः यह सुना जा रहा है यह देखा जाता है कि वह संत समाज में अपना वर्चस्व और नाम के लिए संस्कार संस्कृति को ताक में रखकर अपने संत के प्रभाव का दुरुपयोग कर चंद बहरूपिए समाज सेवा की आड़ में जैन समाज में फुट डालो व अपना दबदबा बनाने के लिए किसी भी नीति का उपयोग करते रहो दिगंबर जैन समाज का हृदय स्थल इंदौर शहर के इतिहास से कोई अनजान नहीं है फिर भी यहां के इतिहास को बदलते हुए कुछ तामसी प्रवृत्ति के बंधु अपने मन के घोड़े को दौड़ते रहते हैं
जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण इंदौर शहर स्थित महालक्ष्मी नगर दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य मुनि श्री निष्पक्ष सागरजी और निस्पृह सागर जी महाराज ने संपूर्ण दिगंबर जैन समाज से रिश्ता नाता तोड़ते हुए सिर्फ परवार जैन समाज के हित में अपने आशीर्वाद और सानिध्य मे जनगणना का कार्य परवार जैन सोशल ग्रुप के सहयोग से करवाया जा रहा है ? क्या महालक्ष्मी नगर इंदौर में रहने वाले दिगंबर जैन समाज के अन्य परिजन उस मंदिर मैं आना छोड़ दे ?
यह पक्षपात जैन समाज को किस धारा से जोड़ेगा .?
क्या अब परवार समाज दिगंबर जैन समाज के नाम का उल्लेख नहीं करेगा .? अगर नहीं करता है तो… वह हर कार्य के लिए स्वतंत्र हैं !
क्या उनके भगवान भी अब दूसरे मंदिर में या अलग रहेंगे क्योंकि ऊपर नीचे का अलग पूजा – पाठ की संस्कृति चालू हो चुकी है !उनमें भी बटवारा होने लगा ?
मुनिश्री से नमोस्तु के साथ निवेदन है कि महालक्ष्मी नगर संपूर्ण दिगंबर जैन समाज के बारे में एक बार विचार करें