दिल्ली के राष्ट्रीय जैन पत्रकार सम्मेलन मे तीर्थ क्षेत्रों के संरक्षक के दायित्वों को निभाने के संकल्प के साथ नई ऊर्जा शक्ति लिए अग्रसर …

दिल्ली ! (देवपुरी वंदना) हमें अपनी संस्कार, संस्कृति, की पहचान ऐतिहासिक पौराणिक धरोहरों को बचाने के लिए उनका इतिहास को सुरक्षित रखने के लिए अपने जैन पत्र करो की सुझावों को गंभीरता से लेते हुए युवा वर्गों को समाज से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है साथ ही साथ तीर्थ क्षेत्र कमेटी में पारदर्शिता लाना अत्यंत आवश्यक है साथ ही जैन धर्म के संदेश को दुनिया में सरल तरीके से पहुंचाना पड़ेगा तभी जिन धर्म आगे बढ़ पाएगा उक्त विचारों से आचार्य श्री 108 प्रज्ञ सागर जी ने भारत वर्षीय तीर्थ क्षेत्र कमेटी के सभी कार्यकारिणी के साथियों और अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ के सभी सदस्यों के समक्ष विगत दो दिनों तक चले जैन राष्ट्रीय जैन पत्रकार सम्मेलन में कही !


भारत वर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के शतकोत्तर रजत स्थापना वर्ष 2026-27 के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय जैन पत्रकार सम्मेलन परम पूज्य राष्ट्रसंत परम्परा चार्य 108 प्रज्ञ सागर जी मुनिराज ससंघ के पावन सान्निध्य नई दिल्ली स्थित बाहुबली एन्क्लेव स्थित श्री 1008 दिगम्बर जैन मंदिर राष्ट्रीय जैन पत्रकार सम्मेलन को तीर्थों की सुरक्षा, संवर्धन, विकास और उसके लिये फंडिग (दान) के तरीके, जैनों की घटती संख्या बल को कैसे बढ़ाया जाए, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैन धर्म के फोलोअर्स कैसे बढ़े तथा तीर्थक्षेत्र कमेटी के 125वें स्थापना वर्ष में क्या हो योजनाएं एवं पत्रकारों की उसमें भूमिका पर अखिल भारतीय जैन पत्र सम्पादक संघ के तत्वावधान में देशभर से आये जैन पत्रकारों ने अपने विचार-आलेख प्रस्तुत किये आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने सभी वक्ताओं के विचारों के उपरांत समाज एवं तीर्थक्षेत्र कमेटी के पदाधिकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन, चेयरमैन 125वां स्थापना वर्ष समिति श्री जवाहर लाल जैन, दिल्ली आंचलिक अध्यक्ष प्रद्युम्न जैन को सभी विषयों पर एक-एक करके अपना गहन चिंतन करते हुए प्रेरणा दायक दिशा-निर्देशन दिया। इस सम्मेलन के आयोजक श्री दिगम्बर जैन सभा, बाहुबली एन्क्लेव के अध्यक्ष श्री नवीन जैन एवं सचिव श्री धन कुमार जैन ने सभी व्यवस्था सुव्यवस्थित ढंग से बनाई।
दिल्ली के ऋषभ विहार मंदिर में अभिषेक-शांतिधारा के पश्चात् आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी के पावन दर्शन एवं मंगल उद्बोधन के पश्चात् पत्रकार समूह चांदनी चौक स्थित अतिशय तीर्थ श्री दिगम्बर जैन लाल मंदिर जी पहुंचा जहां सचिव नीरज जैन एवं प्रबंधक श्री पुनीत जैन के नेतृत्व में लाल मंदिर जी समेत प्राचीन श्री दिगंबर जैन पंचायत धर्मपुरा के अंतर्गत पुरानी दिल्ली के आठों जिन मंदिरों – कूचा सेठ बड़ा मंदिर, कूचा सेठ छोटा मंदिर, सतघरा मंदिर, चैत्यालय, मेरू मंदिर, पद्माती पुरवाल मंदिर, पंचायती मंदिर, नया मंदिर धर्मपुरा के दर्शन एवं पत्रकार समूह का स्वागत अभिनंदन किया गया। सभी मंदिरों का इतिहास, महत्व, आश्चर्यजनक एवं अध्यात्म दृष्टि से महत्वपूर्ण बातें श्री अतुल जैन (सचिव) ने कुशलता से पत्रकारों को जानकारी दी। दोपहर में ग्रीन पार्क जिनालय में अर्हं ध्यान प्रणेता मुनि श्री 108 प्रणम्य सागरजी के मंगल दर्शन, आशीर्वाद एवं तीर्थों की सुरक्षा और कार्तिक माह की अष्टाह्निका के महत्व पर मंगल उद्बोधन का लाभ प्राप्त हुआ। मुनि श्री ने कहा चेतन और अचेतन दोनों तीर्थों का ध्यान रखना जरूरी है। नहाना तीर्थ नहीं, धर्म का आत्मा में ओत-प्रोत होना तीर्थ है। सभी मंदिरों के सरकारी दस्तावेज सही होने चाहिए। पुराने जिनालय का कोई पुख्ता डाटा नहीं, तो सब बेकार है।

जिनालय कितने, अतिशय क्षेत्र कितने, सिद्ध क्षेत्र कितने यह डाटा बनना चाहिए। कोशिश करें जैन धर्म अपने आपस की समस्याएं कोर्ट ले जाने की बजाय, स्वयं निपटाए। ऐसा संगठन बनाए जा सामाजिक विवादों को सुलझाये।
सायं द्वारका सेक्टर-10 स्थित श्री दिगम्बर जैन रत्नत्रय जिनमंदिर के अध्यक्ष शरद राज कासलीवाल जी ने यहां के सुंदर जिनालय के मनोरम दर्शन करायें, आरती एवं पत्रकार समूह का जोरदार अभिनंद- स्वागत किया एवं मंदिर जी की खासियत की जानकारी दी। दिल्ली के बाहुबली एन्क्लेव जिनालय में आचार्य श्री प्रज्ञ सागर जी के मंगल आशीर्वाद से समाप्त हुआ। उन्होंने सम्मेलन में दोनों दिन पूरा समय प्रदान किया। सम्मेलन का संयोजन शरद जैन (महालक्ष्मी चैनल) ने किया। तीर्थक्षेत्र कमेटी की ओर से श्रीमती मीनू जैन ने सम्मेलन की कमान संभाली तो अखिल भारतीय जैन सम्पादक संघ के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. अखिल बंसल जी का महती योगदान रहा, जिससे पत्रकार सम्मेलन ने नई ऊंचाइयों को प्राप्त किया।
तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन एवं जवाहर लाल जैन, पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष शैलेन्द्र जैन की अध्यक्षता एवं पत्रकार संघ के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. अखिल बंसल ने कुशलता से संचालन किया। प्रमुख वक्ताओं में डॉ. वीरसागर जैन, श्री धीरज जैन संयुक्त सचिव जनगणना गृहमंत्रालय, संदीप जैन उप सचिव शिक्षा मंत्रालय रहे।
जयेन्द्र कीर्ति जी उज्जैन : प्रांरभिक संबोधन में तीर्थक्षेत्र कमेटी को फंडिंग के विषय में कहा कि सभी राज्यों में सदस्यता अभियान, चातुर्मास में तीर्थ कलश, प्रत्येक जिनालय में समिति चुनाव में एक पद तीर्थक्षेत्र कमेटी के सदस्य के रूप में अनिवार्य हो, क्षेत्रों पर जैन बंधुओं की नियुक्ति, दश लक्षण पर्व में तीर्थ संबंधी प्रचार, आचार्यों से निवेदन तीर्थों को गोद ले कर उनका विकास करायें, शिक्षा-चिकित्सा को भी साथ में लें।
डॉ. वीर सागर जैन : जैन धर्म की प्रभावना के लिये जैनेत्तर समाज से भी उतना ही वात्सलय करें जितना हम जैनों से करते हैं। महावीर स्वामी के प्रमुख गौतम गणधर रहे जो ब्राह्मण थे। आचार्य श्री108 विद्यानंद जी ने अनेक जैनेतर कवियों, लेखकों, प्रशासनिक अधिकारियों को अपनाया और आज आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी भी मनोज तिवारी, स्मृति ईरानी, सुलेखा जी आदि अनेक राजनीतिक हस्तियों को वात्सल्य प्रदान कर जिन प्रभावना को नई ऊंचाइयां प्रदान कर रहे हैं। हमें अन्य धर्मों के लोगों को भी अपने कार्यक्रमों में बुलाना चाहिए, उनके पास जाना चाहिए। नये मंदिरों के विषय में उन्होंने कहा पुराने खूब संभालो, लेकिन समय की जरूरत है नये बन रहे तो बन जाने दो। पैसे तो मिट्टी में मिलने है, नये मंदिरों में नहीं लगेंगे तो कही न कही तो लगेंगे ही। फैक्ट्री, नया फ्लैट आप बनाते हैं, तो मंदिरों को मनाई क्यों? तीसरी बात जब पत्रिकाएं निकालते हैं उसमें ऐसा छापे कि वह जैनेत्तर समाज के हाथ में जाएं, तो वे भी जैन धर्म के बारे में कुछ जाने। शिथिलाचार पर ज्यादा लिखने से बेहतर है वैज्ञानिक दृष्टियों को समाने रखें कि जितने आविष्कार आज हो रहे हैं, आधे से ज्यादा आचार्यों द्वारा रचित जैन ग्रंथों से लिये गये हैं। सिर्फ पोजिटीविटी पर आईये, अच्छी बातों को निकालकर समाने लाओ।
धीरज जैन, जनगणना मंत्रालय : भारत सरकार द्वारा जनगणना दो चरणों में की जाएगी। प्रथम चरण अप्रैल से दिसंबर 2026 तक चलेगा जिसमें व्यक्ति कहां किन परिस्थितियों में रह रहा है, मकान आदि की जानकारी ली जाएगी। दूसरा चरण फरवरी 2027 से प्रारंभ होगा जिसके लिये जनगणना प्रारूप अभी जारी किया जाना है। उसमें व्यक्ति का धर्म, भाषा, कार्य आदि व्यक्तिगत जानकारी डिजीटल रूप में ली जाएगी। तीन चीजों पर हमें ध्यान देना है कि धर्म के कालम में ‘जैन’ लिखे 2. अन्य भाषाओं में प्राकृत लिखें 3. जनगणना के समय आपके घर आने वाले व्यक्ति को समय देकर, सही जानकारी उसे दें तथा चैक भी करें। इतना करने पर निश्चित तौर पर जैनों की संख्या 44 लाख 53 हजार से बढ़कर एक या दो करोड़ हो सकती है। और जब संख्या में इतना बढ़ा उछाल आएगा तो सरकार संशय में पड़ सकती है। इसलिये अभी से देशभर की बड़ी जैन संस्थाओं, जिनालयों की समितियों को अपने लैटर हेड पर गृह मंत्री के नाम अपनी-अपनी भाषा में निवेदन पत्र भेजना चाहिए कि इस बार जैनों की जनगणना सही तरीके से कराई जाए, जैन समाज के आंकड़े कहीं ज्यादा है।
संदीप जैन उपसचिव शिक्षा मंत्रालय : पत्रकार-शिक्षाविद् एकसाथ काम करते हैं, तो बच्चे जो देश की नींव हैं, वे नित नई ऊंचाईयों पर पहुंचते हैं। आज हर सूचना इंटरनेट पर मौजूद है, लेकिन फिर भी बच्चों को जो आवश्यक जानकारी देनी है, वह उपलब्ध नहीं हो पाती है। बच्चे Raw Diamond हैं, उन्हें बस Polish करने की जरूरत है।
आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने कहा कि जैन संस्कृति एवं तीर्थों के संरक्षण संवर्धन में विचारों का आदान-प्रदान बेहद महत्वपूर्ण है। यहीं विचार कहीं न कहीं क्रियान्वयन होते हैं। पत्रकार बंधु अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचाते रहें, कोई न कोई उन पर अमल करेगा और वहीं से क्रांति आएगी। जैन धर्म का विज्ञान अन्य लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करें। जैन धर्म पूरे विश्व में फैला हुआ था, अब हमारी विचारधारा संकुलित हो गई है। जनसंख्या के वक्त धर्म में ‘जैन’ लिखिये, जाति कॉलम में जाति ही भरिये, हमारी हजारों जातियां है, वरना लुप्त हो जाएंगी। सभी को जागरूक करें। हर प्रांत से संस्थाओं के अलग-अलग फारमेट में, भाषा में सरकार को निवेदन पत्र भेजें कि जैनों का भारत के इतिहास में बड़ा योगदान है, श्रमण संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन के लिये जनगणना कम बताई जा रही है, वह सही तरीके से कराई जाए। भाषा में प्राकृत और जाति में जो जाति है, वह लिखिये। पत्रकार वर्ग नेगेटिव लिखने की बजाय अच्छे कार्यों को सामने लाएं। अल्पसंख्यक के बेनिफिट को जरूरी वर्ग तक पहुंचाने के लिये अपने-अपने क्षेत्र में समितियां एस.डी.एम. को बैठाकर अल्पसंख्यता सर्टिफिकेट बनवाएं।
डॉ. राजीव जैन प्राचार्य, आगरा : तीर्थों के लिये फंडिंग के लिये लोगों को जागरूक कीजिए, दान परंपरा को नये रूप में पुनर्जीवित कीजिए जिससे तीर्थ स्वयं आत्मनिर्भर बनें। हर जैन परिवार मासिक बजट का एक छोटा हिस्सा तीर्थ निधि के रूप में नियमित रूप से प्रदान करे। तीर्थ केवल आराधना का स्थान न रहकर समाज सेवा का केंद्र भी बनें। प्रत्येक तीर्थ पर विद्यालय, चिकित्सालय, गोशाला अथवा संस्कृति अध्ययन केंद्र स्थापित किये जाएं। नये तीर्थ बनाने से पहले पुराने तीर्थों की मरम्मत, संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी। हर तीर्थक्षेत्र का इतिहास और गौरवशाली अतीत इंटरनेट पर उपलब्ध होना चाहिए, ताकि देश-विदेश के लोग उन्हें जान सकें। प्रत्येक तीर्थ का डिजीटल अभिलेख बनना चाहिए। युवा ऊर्जा, तकनीकी सोच और पारदर्शिता तीर्थक्षेत्र कमेटी को नई दिशा दे सकती है। दान दातार को भरोसा दिलाइये कि उसके दान का उपयोग सही दिशा में हो रहा है। डिजीटल पारदर्शी लेखा प्रणाली लागू की जानी चाहिए, दान और व्यय की पूरी जानकारी आनलाइन सार्वजनिक हो।
एडवोकेट अनुपचंद जैन, फिरोजाबाद : जैन धर्म के फोलोअर्स बढ़ाने के लिये जैन-अजैन को जोड़ना होगा। अहिंसा, अनेकांत, अपरिग्रह, शाकाहार सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार, हिंदी-अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में अच्छे वक्ताओं को तैयार करना होगा। महंगे आयोजनों में अपव्यय से बचकर, शिक्षा, चिकित्सा, बोर्डिंग हाउस, जैन अनाथालय की स्थापनाओं पर ध्यान देना चाहिए। दिगंबर-श्वेताम्बर, पंथवाद, संतवाद आदि की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर कार्य करना होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले सैमिनारों में सक्रिय भागीदारी की जाए।
आचार्य श्री ने उपरोक्त वक्तव्यों के बाद कहा कि जैन धर्म का मूल संदेश है आत्मशांति और विश्व शांति हो। इन दोनों चीजों के लिये हम क्या कर रहे हैं, यह विचारणीय है। इन दोनों चीजों को पैदा करने से अनुयायी बढ़ पायेंगे। अभी हम केवल अपनी धार्मिक क्रियाओं से ही इतिश्री मान लेते हैं। ज्ञान से ध्यान की सिद्धि और ध्यान से मोक्ष की सिद्धि होती है। लोगों के विचारों की शुद्धि कीजिए और ध्यान से प्रभावित कीजिये। सबसे सरल उपाय है ध्यान केन्द्र खोलना। सामायिक का अर्थ है समता। आदमी को जीवन में समता चाहिये। मेडिटेशन सेंटर रिलेक्स करते हैं, लेकिन सामायिक विचारों और आत्मशुद्धि करते हैं। उसके जीवन में अमूल-चूल परिवर्तन आ जाएगा। सामायिक केंद्रों का प्रसार कीजिए। तीर्थंकरों की ध्यान मुद्रा, खड्गासन या पद्मासन, हमें ध्यान ही सिखा रहे हैं। लेकिन आज हमारे में से ध्यान लुप्त हो गया है। व्यक्ति विशेष धर्म घर पर कीजिये, लेकिन विश्व में बाहर पूर्ण योग (सामायिक) पहुंचाइये, दीजिये। सामायिक करिये – तन-मन-चेतन से स्वस्थ हो, इससे करोड़ों जुड़ेंगे और जिनशासन के भक्त बनेंगे।
ललित गर्ग इंदिरापुरम् : आज योग दिवस जो मनाया जाता है, वह जैन धर्म की देन है। भगवान महावीर से ही सारी ध्यान योग प्रक्रिया उत्पन्न हुई है। इसे भौतिक वर्ग के बीच में प्रभावकारी ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए।
आचार्य श्री ने कहा कि आज विश्व के सभी देश सबसे ज्यादा अपना बजट डिफेंस और हैल्थ पर खर्च करते हैं। भगवान महावीर स्वामी कहते हैं डिफेंस से बचने के लिये अहिंसा और हैल्थ सही रखने के लिये सही आहार। ये दोनों सिद्धांत दुनिया में पहुंचाने से भारत ‘विश्व गुरु’ बन सकता है।
डॉ. राजीव प्रचण्डिया अलीगढ़ : जैन-फॉलोअर्स बढ़ाने के लिये जैन धर्म के उपयोगी सूत्र-सिद्धांतों को प्रभावी व प्रामाणिक रूप से जैनेत्तर समाज में बताने, समझाने की जरूरत है। संगोष्ठियों-सेमिनारों -वेबिनारों के जरिये अजैन समुदायों में जैन धर्म दर्शन- संस्कृति का प्रचार। नाटक, संगीत, क्विज, प्रतियोगिताओं के माध्यम से प्रथमानुयोग के कथानकों, तीर्थंकरों, ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन चारित्र को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विश्वविद्यालयों में जैन चेयर्स स्थापित हो जिससे जैन धर्म के सिद्धांतों का विधिवत पठन-पाठन हो सके। जैन संस्कृति के रहन-सहन, खान-पान (शाकाहार), जैन जीवनशैली का सम्यक्ज्ञान करायें।
प्रो. सुरेन्द्र कुमार जैन भगवां : जैन संख्या का रिकार्ड हमारे पास नहीं है, इस ओर ध्यान देना चाहिए। हम लोग जैन नहीं रहे, आज तेरह-बीस, गुरुभक्त बन गये हैं। हम असहिष्णु बन रहे हैं। हमारा धर्म पूजा-कर्मकांड तक रहेगा, तो हम अपने अनुयायी नहीं बढ़ा सकेंगे। बच्चों को जैन संस्कार देने होंगे। यही संस्कार बेटियों को अन्य समाज में जाने से रोक सकेंगे। अन्य धर्म से आई बहुओं को अपनाना होगा, वर्ना परिवार ही हमसे अलग हो जाएगा। जैन जीवनशैली में वापस आने वाले लोगों से हमें रोटी-बेटी का व्यवहार समानता के साथ रखना होगा। ईसाई-अन्य मिशनरी के समान जैन जीवन शैली का प्रचार-प्रसार करना होगा।
प्रो. अनेकांत कुमार जैन नई दिल्ली: हम जितना कार्य कर रहे हैं, उसका 1 प्रतिशत भी जैनेत्तर समाज में नहीं जाता। गंभीरता से सोचिये, हम कहां खड़े हैं। जनसंख्या बढ़ाने के लिये जिस परिवार में अधिक संतान हो, उन्हें सार्वजनिक रूप से सम्मानित करें। उन्हें रोजगार दें, यानि संयुक्त परिवार को प्रोत्साहित करें। बच्चों के विवाह 21 वर्ष होते ही कर दें। पढ़ाई विवाह के बाद चलने दें। युवाओं के फ्लेवर वाले कार्यक्रम मर्यादित ढंग से आयोजित करें, जिससे वे अपने जीवनसाथी अपने ही समाज में चुन सकें, बाहर न जाएं। बच्चों में जैनत्व संस्कार दृढ़ता से रखें, जिससे वे अन्य समाज की संस्कृति, खानपान रास न आए। छोटे-छोटे नगर, गांव में अनाथालय तथा कन्या अनाथालय खोलें, जिसमें बच्चों को जैन धर्म दर्शन के अनुसार शिक्षा दी जाए। अन्य संप्रदायों के उपेक्षित लोग, जो मद्य, मांस और मदिरा का त्याग करें उन्हें देव-दर्शन का संकल्प दिलाकर अपना गोत्र दान करें। नि:संतान दंपत्ति कानूनी रूप से बच्चों को गोद अवश्य लें। जो आर्थिक सम्पन्न हैं, उनकी एक संतान है तो वे भी संतानों को गोद लें। आपनों को भटकने से रोकें और दूसरों को अपना बनाएं। इस मिशन पर बड़ी योजना, बड़ा बजट और टीम बनाकर कार्य करें।
तभीआचार्य श्री ने कहा कि महावीर शरणालय बनाकर अनाथ बच्चों को अहिंसक, शाकाहारी बनायें। धर्म परिवर्तन के लिये नहीं, व्यक्ति को इंसान बनाने के लिये महावीर शरणालय खोलिये। बच्चों को संस्कारित, शिक्षित, अच्छे विचारों से दीक्षित किया जाए। सम्पन्न लोगों के फंड से ये शरणालय खोले जाएं और उनका कंट्रोल केन्द्रीयकृत किया जाए। 108 लोग इकट्ठे करें, लोकेशन चुने और सभी जगह एक ही मॉडल से संचालित कीजिये। फिर देखिये अहिंसक, शाकाहार लोगों की संख्या बढ़ सकती है। जब भागने वाले लोग, लौट कर आये तो उनके लिये दरवाजे खुले रखिये। गोत्र दान की परंपरा प्रमाणिक है तो उसे आगे बढ़ाना चाहिये।
डॉ. अल्पना जैन ग्वालियर : जिन तीर्थों पर आवश्यकता से अधिक फंड है, उनसे कुछ फंड लेकर अन्य तीर्थों का विकास किया जा सकता है। प्रत्येक श्रावक स्वेच्छा से अपनी आय का कुछ प्रतिशत दान करें। जन्मदिवस, विवाह आदि बड़े होटलों की बजाय तीर्थक्षेत्रों पर जाकर करें। चातुर्मास में एक कलश तीर्थ संरक्षण, संवर्धन के लिये हो। जिन तीर्थों के पास कृषि भूमि उपलब्ध है, वहां फसल उगाकर आमदनी बढ़ाई जाए। युवाओं को तीर्थ की महत्ता के संस्कार प्रदान किये जाएं। वे तीर्थों को अपनी धरोहर समझें।
अकलेश जैन, अजमेर : प्रत्येक जैन परिवार के एक युवा को अपने से जोड़े तथा उसे किसी भी योजना के कार्यान्वयन में सम्मिलित करे। जैन महिलाओं की जागृति व समर्पण को तीर्थक्षेत्रों के विभिन्न प्रकल्पों से जोड़े। आ.ई.टी. प्रोफेशनल्स को नई तकनीक, क्षेत्रों के सुरक्षा एवं स्वामित्व संबंधी प्रपत्रों के अभियान जैसे कार्य में जोड़े। सरकारी मंत्रालयों के सहयोग से तीर्थों को समृद्ध करने के लिये राजनीतिक भागीदारी बढ़ायें। भावी योजनाओं का क्रियान्वयन एवं प्रचार-प्रसार जैन पत्रकारों को घर-घर तक पहुंचाना चाहिए। सोशल मीडिया का उपयोग योजनाबद्ध तरीके से करें। क्षेत्रीय शिक्षण, मैनेजमेंट, उपयोग और इस युग में तीर्थक्षेत्र कमेटी को अपने संगठन हेतु नई करवट की आवश्यकता है।
अनुराग जैन अजमेर : तीर्थक्षेत्र कमेटी अपनी वृहद कार्य योजना के दृष्टिगत यह स्पष्ट करें कि देश के जैन पत्रकारों से उन्हें क्या अपेक्षा है ? उनके समक्ष अपनी कार्ययोजना रखें। तीर्थों की सुरक्षा के लिये जिन तीर्थों पर एक भी जैन परिवार नहीं है, वहां जैन परिवारों को स्थापित किया जाए। 10 रुपये प्रतिमाह के अनिवार्य शुल्क लिये जाने की योजना देश के राज्यों से गांवों की ढाणी तक टीम तैयार करनी होगी। समाज के युवाओं को इसमें जोड़ा जा सकता है। जैन संख्या बढ़ाने के लिये गुरुओं को अपने मंचों से यह संदेश समाज में देना चाहिए।
डॉ. मीना जैन, उदयपुर : छोटे-छोटे ब्लाग बनाकर तीर्थों के बारे में जानकारी का प्रसार कर सकते हैं। युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिये छोटी-छोटी योजनाएं लांच करने की जरूरत है। जिनेश कोठिया, दिल्ली के वक्तव्य से दूसरे सत्र का समापन हुआ !
गिरीश जैन अलीगढ़ : विश्वविद्यालयों- अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में जैन पाठ्यक्रम प्रारंभ किये जाएं। आनलाइन प्लेटफार्म पर जैन दर्शन के कोर्स सुगमता से उपलब्ध हों। जैन सिद्धातों को सरल एवं प्रभावी ढंग से इंस्टाग्राम, यू-ट्यूब, वेबसाइट के जरिये आधुनिक शैली में वीडियो, डॉक्यूमेंट्री, डिजीटल कन्टेंट दुनिया तक पहुंचायें जाएं। विभिन्न देशों के धार्मिक नेताओं, एनजीओ आदि से संवाद बढ़ाऐ जैन आगम को अन्य भाषाओं अंग्रेजी, फ्रैंच, स्पेनिश आदि में प्रकाशित किया जाए तथा उन्हें आनलाइन उपलब्ध कराया जाए। युवाओं को जैन धर्म केवल पूजा तक नहीं, बल्कि लाइफ स्टाइल के रूप में अपनाने के लिये प्रेरित किया जाए।
अजित कुमार जैन, पवई : आखिर जैन संख्या क्यों गिरी? बच्चों को संस्कारित शिक्षा से दूरकर पैसे कमाने की मशीन बना दिया। उन्हें उच्च शिक्षा के लिये विदेश भेजा और वे वहां पढ़कर वहीं कार्य में लग गए और 45 वर्ष तक विवाह ही नहीं हुआ। ये माता-पिता की गलती है, कि बालिकाओं को शहर से बाहर भेज देते हैं। जैन सबसे कमजोर कड़ी मानी जाती है, इस्लामिक मुहिम का शिकार हो रही है। वह लौटकर आती भी हैं, तो उन्हें स्वीकार नहीं किया जाता। उद्योगपति प्रलोभन दें कि जो 21-22 की उम्र में या जिसके परिवार में अधिक बच्चे होंगे, उन्हें अपने यहां रोजगार देंगे।
जगदीश प्रसाद जैन आगरा : तीर्थ क्षेत्रों के सेवा कार्य एवं विकास में तीर्थक्षेत्र कमेटी के कार्यों का उल्लेख किया। उच्च न्यायालय में चल रहे मामलों में किये जा रहे कार्य आदि योगदान को सभा के समक्ष रखा। तीर्थों के विकास के लिये राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक प्रांत की अलग-अलग कमेटी बनाकर कार्य करना चाहिए। युवा वर्ग को स्थायी सदस्यता हेतु प्रेरित करें। नगरों के प्रमुख मंदिरों से प्रतिवर्ष तीर्थ रक्षा हेतु राशि प्रदान करने का निवेदन करना चाहिए।
राहुल जैन आज तक, नोएडा : युवाओं को तो नहीं, तीर्थक्षेत्र कमेटी क्या है, क्या कार्य करती है। आप इंस्टाग्राम आदि पर नहीं है। जैन धर्म की ओथेंटिक सेन्ट्रलाइज्ड सूचनाएं प्राप्त होनी चाहिए। इसके लिये यूथ विंग को अपने साथ जोड़िये।
सचिन जैन बड़ौत : अनेक तीर्थों के जाने के रास्ते संकीर्ण है, उन्हें सड़क मार्ग से जोडा जाना चाहिए। क्षेत्रों पर यात्रियों के लिये नाश्ते-भोजन, रुकने की व्यवस्था हो। मुख्य कर्मचारी जैन हो। यात्री समूह में यात्रा करें। क्षेत्रों पर भोजनालयों में ही भोजन करें। तीर्थों पर अपने खाने-पीने का सामान लेकर जाएं, संयम से रहे। यात्री तीर्थों पर किसी भी तरह की अनियमितता की सूचना तीर्थक्षेत्र कमेटी को भेजे।
डॉ. इंदु जैन, नई दिल्ली : युवाओं को तीर्थों से जोड़ने के लिये एक प्रतियोगिता का आयोजन करें जिसका नाम हो – जैन तीर्थ मेरा गौरव जिसके अंतर्गत भारतवर्ष के तीर्थों – जिनालयों का वीडियो आमंत्रित किया जाए जिसमें उस तीर्थ / जिनालय की भूगोलिक स्थिति, इतिहास, अतिशयकारी घटनाओं, प्रतिमाओं, ट्रस्टियों आदि की जानकारी हो आमंत्रित करें तथा प्रोत्साहन स्वरूप पुरस्कार राशि भी रखें। इससे बच्चों, युवाओं के अंदर जिनालयों के प्रति नई चेतना जागृत होगी।
सत्र के अंत में तीर्थक्षेत्र कमेटी के श्री जवाहर लाल जैन ने प्राचीन अग्रवाल दिगंबर जैन पंचायत, धर्मपुरा (लाल‌ मंदिर समिति), द्वारका से.10 और पत्रकार सम्मेलन आयोजक बाहुबली एन्क्लेव जैन समाज का धन्यवाद किया, वहीं दिल्ली अंचल के अध्यक्ष श्री प्रद्युम्न जैन ने तीर्थक्षेत्र कमेटी के 124 साल के कार्यकाल में जो भी असुविधाएं रह गई हैं, उनको दूर करने के लिये हर प्रांत का हर श्रावक जिम्मेदारी से आगे आये और उन्हें दूर करने में सहयोग प्रदान करे। साथ ही दिल्ली के जिनालयों से आह्वान किया कि वे तीर्थक्षेत्र कमेटी की गुल्लकों को अपने यहां रखें तथा हर मंदिर का एक व्यक्ति सक्रिय सदस्य बने।
–प्रवीण जैन ✍🏻
‌सांध्य लक्ष्मी चैनल (दिल्ली)

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