आगरा में 28 जुलाई को मेडिटेशन गुरु उपाध्याय श्री 108 विहसंतसागर मुनिराज (साद) का पावन चातुर्मास कलश स्थापना
आगरा ! (देवपुरी वंदना) जैन श्रमण परम्परा में चातुर्मास का अत्यन्त महत्व है। यह आध्यात्मिक जागृति का महापर्व है, जिसमें स्व परहित साधन का अच्छा अवसर प्राप्त होता है। यही कारण है कि वर्षा वास को मुनिचर्या का अनिवार्य अंग और महत्वपूर्ण योग माना गया है। इसलिये इसे वर्षायोग अथवा चातुर्मास भी कहा जाता है। भगवती अराधना में लिखा है कि ‘वर्षाकालस्य चतुर्षुमासेषु एकत्रैवावस्थानं भ्रमण त्याग’ अर्थात वर्षाकाल के चार महीनों में साधुओं को भ्रमण का त्याग करके एक स्थान पर रहने का विधान किया गया है। इसे श्रमण के दस स्थितिकल्पों में अन्तिम पर्युषणा कल्प के नाम से अभिहित किया गया है। ‘वृहतकल्पभाष्य’ में इसे ‘संवत्सर’ कहा गया है। वर्षाकाल में आकाशमण्डल में घटायें छाई रहती हैं तथा प्राय: वर्षा भी निरंतर होती रहती है। इससे यत्र—तत्र भ्रमण तथा विहार के मार्ग रुक जाते हैं, नदी नाले उमड़ जाते हैं। वनस्पतिकाय आदि हरितकाय मार्ग ओर मैदानों में फैल जाते हैं। सूक्ष्म—स्थूल जीव—जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं। अत: किसी भी परजीव की विराधना तथा आत्म विराधना से बचने के लिए श्रमण धर्म में वर्षाकाल में एकत्र—वास का विधान किया गया है। यही समय एक स्थान पर स्थिर रहने का सबसे उत्कृष्ट समय होता है। श्रमण और श्रावक दोनों के लिये इस चातुर्मास का धार्मिक तथा आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से महत्व है। इसलिये श्रमण या उनके संघ के श्रावक चातुर्मास या वर्षायोग को सर्वप्रकारेण प्रिय और हितकारी अनुभव करते हैं। इसी क्रिया को सार्थक करते हुए परम पूज्य आचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मेडिटेशन गुरु उपाध्यक्ष श्री 108 विहसंत सागर जी मुनिराज ससंघ का 28 जुलाई 2024 को श्री 1008 महावीर दिगंबर जैन मंदिर डी. ब्लॉक कमला नगर आगरा उत्तर – प्रदेश में होने जा रहा है ।
गुरुवर का परिचय :-
जन्म नाम :- पंकज जैन
जन्म दिनांक :- 12 अगस्त 1983 जन्म
स्थान :- जगदलपुर (छत्तीसगढ़ )
पिताजी :- श्रीमान बृजेश जैन
माता श्री :-श्रीमती मीना जैन
शिक्षा :- दसवीं
ब्रह्मचर्य व्रत :-22 अप्रैल 2001
क्षुल्लक दीक्षा :- 24 मई 2004 नागपुर महाराष्ट्र
मुनि दीक्षा :- 27 फरवरी 2012
दीक्षा गुरु :- गणाचार्य श्री 108 विराग सागर जी गुरुदेव
आगरा जैन समाज के भाग्य जागे।