पंचकल्याणक महोत्सव आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी ससघ के मंगल सानिध्य में शीतल तीर्थ रतलाम में 22 फरवरी 2024 से

कोटा ! ( देवपुरी वंदना ) परम पूज्य प्रज्ञा पुरुषोत्तम, विद्या मार्तंड, आगमसूर्य, चतुर्थ पट्टाचार्य समाधिस्थ गुरुदेव 108 श्री योगीन्द्र सागर जी महामुनिराज की दिव्य कल्पना, वृद्ध साधकों की साधना स्थली, जीव दया का उत्कृष्ट मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध रतलाम शहर से 11 किलोमीटर दूर स्थित क्षेत्र 72 जिनालयों से सुशोभित कैलाश पर्वत की प्रतिकृति एवं स्वातिशय प्रकट भूमि धर्मस्थल शीतल तीर्थ (रतलाम) का बहुप्रतीक्षित पंचकल्याणक महोत्सव प.पू. चर्या शिरोमणि आचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी मुनिराज के सानिध्य में 22 फरवरी 2024 में होना निश्चित हो गया है ।
तीर्थ अधिष्ठात्री बा.ब्र.डॉ सविता जैन ने जानकारी देते हुए बताया कि पूज्य गुरुदेव योगीन्द्र सागर जी मुनिराज के सानिध्य में सन 2009 में इस क्षेत्र की परिकल्पना की गई थी एवं पूज्य श्री के सानिध्य में ही इस भूमि का शिलान्यास किया गया था । प्रारम्भ से ही समय समय पर इस क्षेत्र में अद्भुत अतिशय के दर्शन होते रहे है ओर यहीं कारण है कि यहाँ सदैव भक्तों का जमावड़ा सा लगा रहता है।
विगत 18 फरवरी को डॉ अनुपम जैन (इंदौर) के नेतृत्व में श्री प्रमोद जैन ‘बारदाना’ (सागर), डॉ संजीव सराफ (सागर), श्री विमल झांझरी (इंदौर), श्री अभय जैन (इंदौर), डॉ सविता जैन (रतलाम), श्री महावीर गांधी (रतलाम), श्री प्रभात दोषी (रतलाम), श्री मोहन मलासिया सहित लगभग 25 सदस्यों का प्रतिनिधि मंडल दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र गिरार जी (उ.प्र.) पहुँचा जंहा आचार्य श्री108 विशुद्ध सागर जी गुरुदेव से शीतल तीर्थ पंचकल्याण में सानिध्य हेतु निवेदन किया गया । पूज्य गुरुदेव ने सम्पूर्ण प्रतिनिधिमंडल को आशीर्वाद प्रदान करते हुए पंचकल्याण हेतु 22 फरवरी 2024 से 26 फरवरी 2024 की तिथि घोषित करते हुए अपने ससंघ सानिध्य की स्वीकृति प्रदान की ।
इस हेतु शीघ्र ही आयोजन समिति का गठन, एवं पात्रों के चयन की प्रक्रिया पूर्ण की जायेगी ।

आचार्य श्री 108 योगीन्द्र सागर जी महाराज
एक विभूति परम पूज्य गुरुदेव आचार्य योगीन्द्र सागर जी का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था।ग्वालियर निवासी पं. फौदल प्रसाद शर्मा एवं श्रीमती दमयंती बाई शर्मा के दांपत्य जीवन में बालक रमेश ने 17 फरवरी 1961को जन्म लिया ।बालक रमेश को मात्र 45 दिन की शिशु अवस्था में ही वात्सल्य रत्नाकर परमपूज्य आचार्य श्री विमल सागर जी का मंगल आशीर्वाद प्राप्त हो गया था।पढाई लिखाई में बालक रमेश का मन कम ही लगता था। गली मोहल्ले में होनेवाली सत्य नारायण की कथा सुनकर 8-9 वर्ष की उम्र में बालक रमेश अच्छे कथा वाचक बन गए,जी से सुन ने लगभग 25 30 बच्चों की मण्डली आया करती थी सत्य नारायण की कथा ने रमेश के जीवन में एक मौन क्रांति ला दी।मन में उत्सुकता पैदा कर दी ,प्यास जगा दी ,एक प्रश्न दिलो दिमाग में बैठा दिया की आखिर ये सत्य नारायण भगवान् कौन है ?इन्हें कैसे पाया जाये,एकांत में रमेश के मन में अमीरी ,गरीबी ,जीवन-म्रत्यु के विचार आते थे । ब्राहमण परिवार के सु संस्कारों से परिपूर्ण बालक रमेश अपने प्रारंभिक बाल जीवन से ही अपनी ज्ञान-पिपासा को शांत करने हेतु अनेक संत,ऋषि ,मुनियों और विद्वानों के संपर्क में आने की चेष्टा एवं योग्य गुरु की तलाश करते रहे। मन की शांति के लिए बालक रमेश दर- दर भटकने लगे मंदिर से लेकर मस्जिद ,गुरूद्वारे से चर्च ,मुल्ला मोलवी सेलेकर पंडित पुजारी तक लेकिन कही भी उन्हें संतोष नही मिला।अंत में जाकर चक्रवर्ती परम पूज्य 108 सन्मति सागरजी (फफोतु) महाराज का सानिद्ध्य प्राप्त हुआ।उनकी खोज्पुरी हो चुकी थी।संकल्प विकल्प का भटकाव ख़तम हो गया। गुरु की पारखी नजरों ने भी एक द्रष्टि में हीरे की पहचान कर ली।दोनों एक दुसरे को खोना नहीं चाहते थे ।जिस रमेश को ठीक से देव दर्शन करना नहीं आता था ,जिसे जैन तत्व का ज्ञान नहीं था ,नमोकार मंत्र भी ठीक से याद नहीं था,जिसे जिन साधू चर्या का बोध नहीं था वह आचार्य श्री सन्मति सागर जी के चरणों में नत मस्तक होकर जिन दीक्षा ग्रहण करने की जिद करने लगा।वह दिग. मुद्रा धारण करना चाहता था।अन्तत: शिष्य की इच्छा पूरी हुई ।राग पर विराग की विजय हुई ।रविवार 25 फरवरी 1979 को बामोरकलां शिवपुरी में आचार्य सन्मति सागर जी ने रमेश को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान की। और उनका नाम मुनि श्री 108 ऋषभ सागर रखा गया | धरती की दूब से लेकर स्रष्टिकी सर्वोत्तम करती मनुष्य तक सब पर आपकी दया करुणा और वात्सल्य द्रष्टि देख कर सन्मति सागर जी ने 28 फरवरी 1986 को कोटा में आपको बालाचार्य पद से सुशोभित किया । और आप बालाचार्य योगीन्द्र सागर बन गये | दीक्षा उपरान्त आपने जैनदर्शन .शास्त्र,पुराण व तत्वों का गूढ़-गहन अध्यन्न किया।स्वद्यायको आप प्राण वायु मानते थे ।आपने जिन दीक्षा लेकर सिद्ध कर दिया की जैनधर्म किसी सम्प्रदाय विशेष का नहीं है यह एक ऐसा धर्म है जिसे जैन के आलावा अन्य जाती के लोग भी धारण कर सकते है।यह धर्म मनुष्यों के साथ तिर्यंच तक पालन कर सकते है ।साग वाड़ा में पूज्य आचार्य योगीन्द्र सागरजी द्वारा 400 वर्ष पुरानी 72 प्रतिमाये निकाली ।साथ ही इंद्र देव द्वारा उनका अभिषेक किया गया।ज्यो ज्यो प्रतिमा बाहर आती बरसात की झड़ी प्रारंभ हो जाती और उनका अभिषेक होता जाता ।आपकी समाधि 18 मार्च 2012 को 12 :05 पर हुई । गुरुदेव आज भी हमारे ही है।

राकेश जैन ‘चपलमन’
9829097464

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