12 वर्षों के पश्चात पहली बार अंतर्मुखी मुनि श्री 108 पूज्य सागर जी का अपने जन्म नगर पिपलगोन में 18 मई को प्रातः भव्य मंगल प्रवेश

इंदौर ! ( देवपुरी वंदना ) विश्व के पटल पर दिगंबरत्व का परचम लहराते श्रमण परंपरा की ऐतिहासिक पौराणिक जैन संस्कार, संस्कृति, से ओत-प्रोत स्वयं के साथ – साथ सभी श्रावकों के मानवीय जीवन को सार्थक बनाने के लिए तप, त्याग, साधना, आराधना की प्रतिमूर्ति
अंतर्मुखी मुनि श्री108 पूज्य सागर जी महाराज का इस धरा पर आगमन 3 जुलाई, 1980 को मध्यप्रदेश के पिपलगोन में हुआ । उनके लौकिक पिता का नाम श्री सोमचंद जी जैन और माता का नाम विमला देवी है। महाराज श्री 10 वीं कक्षा तक अध्यायवासी रहे और उसके बाद आत्मोत्थान की राह पर निकल पड़े। इस दौरान किशोरावस्था में मात्र 17 साल की उम्र में ही उन्होंने कई राजनीतिक और सामाजिक पदों को सुशोभित किया। मुनि श्री किशोरावस्था में ही इतने प्रज्ञावान और सक्रिय थे कि वह तहसील पत्रकार सलाहकार मंडल, कसरावद के महामंत्री, युवा जन चेतना मंच, जिला खरगोन (उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव द्वारा संचालित) के सदस्य, एन.एस.यू.आई पिपलगोन के नगर अध्यक्ष, वर्धमान बाल मंडल पिपलगोन के उपाध्यक्ष, पोरवाडा नव युवक मंडल के प्रचार प्रसार मंत्री, जिला पत्रकार संघ के सदस्य भी बने। उन्होंने मित्र मिलन वाचनालय की स्थापना भी छोटी सी उम्र में कर डाली। अग्नि और प्रकाश अपने चिह्न जरूर छोड़ते हैं, 17 साल की उम्र में ही उन्होंने अपने स्कूल में शिक्षकों की कमी को लेकर मित्रों के साथ उग्र लेकिन रचनात्मक आन्दोलन किया। स्कूल में शिक्षक सम्मान करवाना, पौधा रोपण जैसे कार्य करने से वे जुनून की हद तक जुड़े। उन्होंने समाधिस्थ आर्यिका श्री वर्धितमति माता जी की प्रेरणा से आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से 9 फरवरी 1998 बिजौलिया (राजस्थान) में 3 साल का ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। 22 अप्रेल 1999, अजमेर (राजस्थान) में आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत लेने के बाद वह 2001 में कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारूकीर्ति भट्टारक स्वामी जी श्रवणबेलगोला से मिले और उन्हीं की प्रेरणा से क्षुल्लक दीक्षा की ओर कदम बढ़ाया। मुनिश्री को संत सेवा का पहला अवसर वर्ष 2006 केमहामस्तकाभिषेक, श्रवणबेलगोला के समय मिला। यहीं उन्होंने रसना इन्द्रिय पर विजय पाई और उन्हें स्वाद से विरक्ति हुई। यहां उन्हें कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारूकीर्ति भट्टारक स्वामी, श्रवणबेलगोला की बनाई विशेष कमेटी में विशेष स्थान मिला। मुनिश्री ने क्षुल्लक दीक्षा 23 अप्रेल 2008 को डेचा, डूंगरपुर (राजस्थान) में आचार्य श्री अभिनन्दन सागर जी महाराज से कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारूकीर्ति भट्टारक स्वामी जी, श्रवणबेलगोला की प्रेरणा
से धारण की। उन्होंने मुनि दीक्षा एक मई 2015 को भीलूड़ा (राजस्थान) में उपाध्याय श्री 108 अनुभव सागर जी महाराज से धारण की। मुनि श्री कई पुस्तकें लिख चुके हैं और अनेक ग्रंथों का अध्ययन भी उन्होंने किया है। लेखन और अध्ययन का यह सिलसिला निरंतर जारी है। राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर में उनके आशीर्वचन नियमित रूप से छपते रहते हैं।

मुनि श्री 108 पूज्य सागर जी द्वारा लिखी गई पुस्तकें:
समर्पण, सरस्वती आराधना, प्रणाम से प्रारम्भ, एक विचार, चारित्र चक्रवर्ती सार, दस, दशलक्षण, श्रवणबेलगोला दर्शन (हिंदी, अंग्रेजी, कन्नड़), आगमेश्वर गोमटेश्वर, श्रवणबेलगोला,सावधान-समाधान है !गुरुदेव के चरणों में देवपुरी वंदना समाचार पत्र परिवार का नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु,

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