“84 गोत्र एक पहचान : स्थापना दिवस पर खंडेलवाल दिगंबर जैन सरावगी समाज की गौरवगाथा”
इंदौर !(देवपुरी वंदना) खंडेलवाल दिगम्बर जैन समाज का स्वर्णिम, पौराणिक, इतिहास केवल समाज के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष की संस्कार सांस्कृतिक, सामाजिक – धार्मिक मानव सेवा हितार्थ, जीव सेवा भाव और आध्यात्मिक धरोहर के लिए भी गौरव का विषय है!
प्राचीन काल में जब राजस्थान प्रांत के खंडेल गिरी राज्य में महामारी का प्रकोप फैला और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई, तब राजकीय मंत्रियों ने मानव बली का सुझाव दिया। राजा ने इसे अस्वीकार किया, किंतु अज्ञानवश ध्यानमग्न महामुनियों को यज्ञ में आहुति के रूप में बलिदान कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि महामारी और भी भयंकर रूप धारण कर गई।इस संकट की घड़ी में आचार्य अपराजित मुनि श्री यशोभद्र के शिष्य आचार्य श्री जिनसेन जी को खंडेला भेजा गया। आचार्य श्री ने नगरवासियों को नगर से बाहर सुरक्षित स्थान पर रहने की सलाह दी और गहन ध्यानस्थ होकर चक्रेश्वरी देवी मां का आवाहन किया। देवी की कृपा से महामारी समाप्त हुई और नगरवासी रोगमुक्त हो गए।
इस अलौकिक घटना से प्रभावित होकर खंडेल गिरी के राजा स्वयं आचार्य के पास पहुंचे। उन्होंने खेद व्यक्त किया और आचार्य के मार्गदर्शन से जैन धर्म स्वीकार किया। तत्पश्चात भादवा सुदी तेरस, विक्रम संवत 101 को भव्य दरबार का आयोजन हुआ, जिसमें आचार्यश्री जिनसेन द्वारा राजा सहित समस्त सामंतों को जैन धर्म में दीक्षित किया गया।
यही वह ऐतिहासिक दिन था जब 84 सामंतों के 84 गोत्र स्थापित हुए और खंडेलवाल सरावगी समाज की नींव पड़ी। इसके बाद पूरे राज्य में भव्य जिनालय निर्मित किए गए और जैन संस्कृति का विस्तार हुआ!