श्री शांतिवीर शिवधर्माजीत वर्धमानसुरीभ्यो नमः
इंदौर ! (देवपुरी वंदना) श्री शांति सिंधु सी निर्भयताहो वीर सिंधु सी निर्मलता श्री शिव सागर जी सा अनुशासन
हो धर्म सिंधु सी निस्पहता संयत वाणी चिंतन शक्ति हो अजित सुरिवर सी दृढ़ता इन गुणों का संचय हो वर्द्धित हो मन की मृदुता हो मार्ग आपका निष्कंटक यशवती बने यह परम्परा
आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज के 36 वे आचार्य पदारोहण वर्ष वर्धन आषाढ़ शुक्ला दूज दिनांक 24 जून 1990 तथा 75 वे वर्ष वर्धन सन 1950 से सन 2025 हीरक जन्म जयंती पर जीवन परिचय कोटिशः : नमोस्तु
आओ शांति मार्ग पर चले. ...
20 वी सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा में तृतीय पट्टाधीश 108 आचार्य श्री धर्मसागर जी से दीक्षित पट्ट परम्परा के पंचम पट्टाधीश राष्ट्र गौरव वात्सल्य वारिधि तपोनिधि आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज को त्रिकाल नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु
भरत चक्रवती के नाम पर अवतरित भारत देश मे राज्य मध्यप्रदेश में कई भव्य आत्माओं ने अवतरित होकर श्रमण मार्ग अपनाया है ।इसी राज्य के खरगौन जिले के सनावद नगर जो कि सिद्ध क्षेत्र श्री सिद्धवरकूट, श्री सिद्धक्षेत्र पावागिरी ऊन, श्री सिद्ध क्षेत्र चूलगिरी बावनगजा बड़वानी के निकट है। इन सिद्ध क्षेत्रों से करोड़ो मुनि मोक्ष गए है। सनावद नगर के पास से करोड़ों सिद्ध आत्माओं के प्रभाव से
श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर ,श्री सुपार्श्वनाथ,श्री आदिनाथ,श्री सीमधर स्वामी सहित नगर में अनेक चेत्यालय तथा मुनि श्री चारित्र सागर जी सहित अनेक साधुओं की समाधि स्थली
पंचम पट्टाधीश वात्सल्यवारिधि 108 आचार्य श्री वर्धमानसागरजी,मुनि श्री चारित्रसागर जी,मुनि श्री अमेयसागर जी,मुनि श्री श्रेष्ठसागर जी,मुनि श्री अपूर्व सागर जी,मुनि श्री अर्पितसागर जी,मुनि श्री 108 पशस्तसागर जी,मुनि श्री प्रबोधसागर जी, मुनि श्री प्रयोगसागर जी,मुनि श्री सुहित सागर जी,आर्यिका श्री 105 सुदृढ़मति जी आर्यिका श्री 105 क्षीरमति जी,आर्यिका श्री 105तपस्वनीमति ,आर्यिका श्री105 देशनामति जी आर्यिका श्री महायशमति जी,आर्यिका श्री पद्मयश मति जी,क्षुल्लक श्री मोती सागर जी बाल ब्रह्मचारी श्री जतिश जी,बाल ब्रह्मचारी श्री नमनभैया,बाल ब्रह्मचारिणी मृदुलादीदी
बाल ब्रह्मचारिणी सारिकादीदी,अनेक प्रतिमा धारी की गौरवशाली जन्म भूमि ,कर्म भूमि समाधि भूमि,दीक्षा भूमि, पंच कल्याणक भूमि ऐसी पवित्र धर्म नगरी सनावद में पर्युषण पर्व के तृतीय उत्तम आर्जव दिवस पर एक प्रतिभा शाली कुल परिवार नगर का मान बढ़ाने वाले यशस्वी बालक श्री यशवंत का जन्म माता श्रीमती मनोरमा देवी जैन की उज्जवल कोख से प्रसवित हुआ। आपके पिता श्री कमल चंद जी जैन है । 18 सितम्बर 1950 भाद्रपद शुक्ल सप्तमी संवत 2006 को अवतरित होनहार भाग्यशाली सौभाग्यशाली पुत्र के पूर्व 8 पुत्र 4 पुत्रियां असमय काल का ग्रास हुई ।आपके माता पिता ने रिश्तेदारों की सलाह अनुसार आप माता की कोख में थे,तब माता पिता ने महावीर जी में मंदिर की 108 परिक्रमा लगाकर मंदिर की दीवाल पर उल्टे स्वस्तिक बनाकर यह मन्नत ली कि हम बालक का मुंडन यही कराएंगे। मुझे ऐसा महसूस होता है कि जैसे गर्भ कल्याणक की क्रिया हुई।
13 का अशुभ अंक शुभ बना ,
बालक श्री यशवंत के रूप में 13 वी संतान का जन्म हुआ।पावन पर्युषण पर्व के आर्जव धर्म दिवस जन्म होना जैसे जन्म कल्याणक हुआ हो। उस समय बालों का मुंडन नही हुआ।तो संयोग ऐसा बना कि आपकी मुनि दीक्षा श्री महावीर जी मे हुई और आपके दीक्षा पर केशलोचन हुए।जब बालक श्री यशवंत एक 1 वर्ष के हुए तो 5 वर्ष की उम्र तक आपको ननिहाल बगैर माता पिता के रखा गया।जब आपकी उम्र मात्र 12 वर्ष की थी तब आपकी माता जी का असामायिक निधन हुआ ।आपने अनेक आचार्यों आर्यिका संघ के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया
व्रत नियम. :
सन 1967 में श्री मुक्तागिर सिद्ध क्षेत्र में आर्यिका श्री ज्ञानमति माताजी से
आजीवन शूद्र जल :
त्याग और 5 वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत लिया । जनवरी 1968 बागीदौरा राजस्थान में आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार किया।सन 1968 को श्री यशवंत पुनः ग्राम पालोदा में आचार्य श्री 108 शिव सागर जी के दर्शन हेतु गए
गृह त्याग :
मई 1968 से आप संध में शामिल हो गए । भीमपुर जिला डूंगरपुर में आपने द्वियतीय पट्टाधीश आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज से गृह त्याग का नियम लिया ।
दीक्षा हेतु श्रीफल भेंट
बाल ब्रह्मचारी श्री यशवंत जी ने मात्र 19 वर्ष की उम्र में फागुन कृष्णा चतुर्दशी संवत 2025 सन 1969 को
श्री महावीर जी मे आचार्य श्री शिव सागर जी महाराज को मुनि दीक्षा हेतु श्रीफल चढ़ा कर निवेदन किया ।गुरुदेव के आदेश से अगले दिन श्री सम्मेदशिखर जी की यात्रा पर गए। आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज की अनायास समाधि फागुन कृष्णा 30 संवत 2025 को श्री महावीर जी मे होने के कारण पुनः नूतन आचार्य तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज को दीक्षा हेतु श्रीफल भेंट किया ।
मुनि दीक्षा :
तृतीय पट्टाधीश नूतन आचार्य श्री धर्म सागर जी महाराज ने श्री महावीर जी मे फागुन शुक्ला 8 संवत 2025 24 फरवरी 1969 को 6 मुनि 3 आर्यिका तथा 2 क्षुल्लक कुल 11 दीक्षाएं आपके सहित दी । अब ब्रह्मचारी श्री यशवन्त मुनि दीक्षा धारण कर मुनि 108 श्री वर्धमान सागर जी महाराज बन गए ।
उपसर्ग :
नेत्र ज्योति जाना
श्री महावीर जी से आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी महाराज का विहार जयपुर खानिया जी हुआ ज्येष्ठ शुक्ला 5 पंचमी संवत 2025 सन 1969 को अनायास नव दीक्षित मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज की नेत्रों की रोशनी चली जाती है । डॉक्टरों ने परामर्श दिया कि बिना इंजेक्शन लगाए नेत्र ज्योति आना नामुमकिन है ।संघ में विचार विमर्श होने लगा कि मात्र 19 वर्ष की उम्र में इतना उपसर्ग क्या किया जावे दीक्षा छेद कर डॉक्टरी इलाज कराने की भी चर्चा चली । मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज के कानों में चर्चा पहुँचने पर उनहोंने कहा कि में इंजेक्शन नही लगवायेगे प्रसंग आने पर समाधि ले लेंगे
नेत्र ज्योति जाने के 49 घंटे के बाद मुनि श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज ने 1008 श्री चंद्र प्रभु की वेदी पर मस्तक रख कर पूज्य पाद रचित श्री शांतिभक्ति का पाठ स्तुति प्रारम्भ की ।लगातार 3 घंटे शांति भक्ति के प्रभाव से 52 घण्टे बाद प्रभु भक्ति के प्रभाव से बिना डॉक्टरी इलाज से
नेत्र ज्योति वापस आ जाती है ।उस घटना के समय आचार्य श्री धर्म सागर जी सहित 17 मुनि 25 आर्यिकाये 4 क्षुल्लक एवम 1 क्षुल्लिका सहित 47 साधु विराजित थे ।इन पवित्र नेत्रों से जब गुरुदेव का वात्सल्य मयी आशीर्वाद मिलता है तो भक्तों का मानव जीवन सफल हो जाता है।
आचार्य पद :
चारित्र चक्रवती प्रथमचार्य श्री 108 शांति सागर जी महाराज की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्टपरम्परा के चतुर्थ पट्टाचार्य श्री 108 अजित सागर जी महाराज के पत्र के माध्यम से लिखित आदेश अनुसार पारसोला राजस्थान में 24 जून 1990 आषाढ़ सुदी दूज को आचार्य पद गुरु आदेश अनुसार दिया गया। सन 1969 में मुनि दीक्षा तथा आचार्य पद के बाद चातुर्मास वर्ष 1990 से वर्ष 2024 तक विभिन्न तीर्थ क्षेत्रो अतिशय क्षेत्रो प्रदेश राजधानियों महानगरों सिद्ध क्षेत्रो निर्वाण भूमियों आदि में 56 वर्षायोग किये।57 वा टोंक में चल रहा है।
दीक्षाएं :
आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी गुरुदेव ने अभी तक 116 दीक्षाये दी हैं। जिनमें मुनि 41 आर्यिका 45 ऐलक 02 क्षुल्लक 15 तथा क्षुल्लिका 13 दीक्षा दी
चातुर्मास :
परम्परा के पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधि 108 आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने अभी तक 56 चातुर्मास किये हैं। 57 वा वर्षायोग चल रहा है।अधिकांश चातुर्मास स्थली सिद्ध क्षेत्र ,अतिशय क्षेत्र किसी आचार्यो की मुनियों की जन्म समाधि भूमि भी है ।वर्ष 2024 का वर्षायोग पारसोला में किया। वर्ष 2025 में 57 वा वर्षायोग टोंक राजस्थान में वर्ष 1970 के बाद कर रहे हैं।
धैर्य का मीठा फल
कहते है कि भक्त बुलाते हैं तो भगवान दौड़े चले आते हैं। भक्त भी उसी प्रकार गुरु के प्रति अगाध श्रद्धा रखते हैं । खाडी देश में नगर पारसोला सहित सैकड़ों जैन निवासियों के वर्ष ,1990 के पूर्व प्राण संकट में थे तब पारसोला वासी नगर में नूतन समवशरण बनाने को संकल्पित हुए।अनेक वर्षों से धैर्य संतोष रख कर हर वर्ष आचार्य श्री वर्धमान सागर जी से पंच कल्याणक और चातुर्मास का निवेदन करते रहे। अटूट श्रद्धा से चिर प्रतीक्षित कामना पूर्ण हुई और पारसोला में पंच कल्याणक आचार्य श्री ने कराया।और एक के साथ एक फ्री की तर्ज पर वर्ष 2024 के वर्षायोग की ,और प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी का आचार्य पद का शताब्दी महोत्सव वर्ष 2024 से वर्ष 2025 की शुरुवात पारसोला से हुई। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1990 में आपको आचार्य पद भी पारसोला में मिला। इसी कारण समाज और आचार्य श्री के मध्य अटूट भावनात्मक रिश्ता हैं । आपका जन्म सन 1950 में हुआ वर्ष 2025 में 75 वर्ष होने से हीरक जन्म जयंती भी मनाई जा रही हैं
पंच कल्याणक प्रतिष्ठा :
आपने आचार्य पद के बाद 57 वर्ष के साधु जीवन मे 68 से अधिक पंच कल्याणक देश के अनेक राज्यो सिद्ध अतिशय क्षेत्रों महानगर आदि में कराई है
मित व्ययता की दृष्टि से अनेक लधु पंच कल्याणक भी कराए है।
सल्लेखना 57 वर्ष के साधु जीवन मे आपने अनेक उत्कृष्ट सल्लेखना कराई है।
विशेष :
राष्ट्र में आप ऐसे संत आचार्य है जिनके नाम पर कोई प्रोजेक्ट नही है कोई मंदिर क्षेत्र मठ आपके नाम पर नही है।आपका सूत्र है हम हमारी छोडेगें नही दूसरे की बिगाड़ेंगे नही
उपाधियां :
पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री 108 वर्द्धमान सागर जी को समाज द्वारा दी गई उपाधियां भी आपके महान व्यक्तित्व के आगे छोटी लगती है । आचार्य शिरोमणी,वात्सल्य वारिधि ,आध्यात्मिक संत शिरोमणि, राष्ट्र गौरव, जिनधर्म प्रभावक, तपोनिधि, परंपरा के परम्पराचार्य, संस्कृति संरक्षक आदि अनेक उपाधि है।
3 बार महामस्तकाभिषेक
प्रथमाचार्य चरित्र चक्रवती आचार्य श्री 108 शांति सागर जी की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परम्परा के पंचम पट्टाधीश होने के कारण 1008 श्री गोमटेश्वर बाहुबली भगवान के 12 वर्षीय महामस्तकाभिषेक के लिए प्रमुख सानिध्य एवम मार्गदर्शन हेतु वर्ष 1993, वर्ष 2006 तथा वर्ष 2018 में आपको आमंत्रित किया गया। वर्ष 2018 में 390 से अधिक साधुओं ने लाभ लिया इसमें 35 से अधिक आचार्य भी शामिल हुए। वर्ष 2022 में श्री महावीर स्वामी का 24 वर्षो बाद महामस्तकाभिषेक आपके मंगल सानिध्य में हुआ।
धर्म प्रभावना के चिन्ह लक्षण
कर्मयोगी भट्टारक श्री चारुकीर्ती जी स्वामी श्री क्षेत्र श्रवण बेलगोला के अनुसार आपके पैर में चक्र का निशान हैं। जो विशिष्ट शारीरिक लक्षण हैं साधुओं में चक्र राजयोग और धर्म प्रभावना का प्रतीक चिन्ह है
40000 किलोमीटर से अधिक देश के अनेक राज्यों में धर्म प्रभावना हेतु विहार किया।आचार्य श्री 108 शांति सागर जी की परंपरा प्रथमाचार्य श्री 108 शांति सागर जी,आचार्य श्री 108 वीर सागर जी, आचार्य श्री 108 शिव सागर जी,आचार्य श्री 108 धर्म सागर जी ,आचार्य श्री अजित सागर जी आचार्य श्री 108वर्धमान सागर जी सभी आचार्य बाल ब्रह्मचारी हैं। प्रथमाचार्य श्री 108 शांतिसागर जी ने सम्मेद शिखर जी की यात्रा की थी तब चेत्यालय साथ रखा था,तबसे सभी पूर्वाचार्यों से वर्तमान तक संघ में चलित चेत्यालय साथ रहता हैं ताकि संघ के श्रावक श्राविकाएं अभिषेक पूजन आगम अनुसार कर सके।
✍🏻 राजेश पंचोलिया इंदौर