शिष्य में कृतज्ञता, विनय, नम्रता तथा पाप से डरने का गुण होना चाहिए —आचार्य श्री वर्धमान सागर जी
राजस्थान टोंक ! (देवपुरी वंदना) भगवान श्री 1008 महावीर स्वामी की देशना केवल ज्ञान प्राप्त होने के बाद भी अनेक दिनों तक मुखरित नहीं हुई तब सोधर्म इन्द्र के माध्यम से इंद्रभूति गोतम को भगवान का समवशरण में मानस्तंभ देखकर उनका मान ओर मिथ्यात्व दूर हुआ और उन्होंने अंतिम शासन नायक श्री महावीर स्वामी से दीक्षा ग्रहण की दीक्षा लेते ही श्री गौतम स्वामी को मनपर्ययज्ञान तथा 64 में से 63 रिद्धि प्राप्त हुई और 66 दिन बाद प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामी ने भगवान की दिव्य देशना को ग्रहण कर शास्त्रों में लिपिबद्ध किया। यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित धर्म सभा में प्रगट की आचार्य श्री ने बताया कि श्री गौतम स्वामी ने चार प्रथमानुयोग,करुणानुयोग,द्रव्यानुयोग,ओर चरणानुयोग की रचना की।आचार्य श्री ने बताया कि गुरु ज्ञान देते हैं इसलिए उपकार कारण गुरुपूर्णिमा मनाई जाती हैं
आचार्य श्री ने गुरु ओर शिष्य के बारे बताया कि शिष्य ने कृतज्ञता, नम्रता विनय शिष्टाचार सहित अनेक गुण होना चाहिए शिष्य को सद आचारणवान और पाप से भीरू होना चाहिए क्योंकि पाप संसार रूपी समुद्र में डूबा देता हैं इसलिए 6 द्रव्य,सात तत्वों धर्म का सहारा लेकर पुण्य का उपार्जन करना चाहिए। सभी को व्यसन और फैशन से बचना चाहिए।समाज प्रवक्ता श्री पवन श्री विकास श्री रमेश काला अनुसार आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व दीप प्रवज्जलन श्री सुमित जयपुर द्वारा किया गया ।श्री गौतम गण धर स्वामी की पूजन भक्ति भावपूर्वक की गई इसके पश्चात आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के चरण प्रक्षालन श्री कैलाश ,श्री सुरेश ,श्री नंदकिशोर संधी परिवार टोक तथा जिनवाणी श्री अंकित जोबनेर परिवार द्वारा भेंट की गई इसके बाद आचार्य श्री की विभिन्न नगर के धार्मिक मंडलों द्वारा पूजन की गई।इस अवसर पर भिंडर,किशनगढ़ पारसोला ,इंदौर, सनावद,जयपुर ,बंगलौर, बोली, निवाई,ओर निकट के अनेक नगरों से गुरुभक्त उपस्थित हुए प्रातः आचार्य श्री के दर्शन भक्ति की समस्त संघ ने आचार्य भक्ति पूर्वक वंदना की।
राजेश पंचोलिया✍🏻
इंदौर