ज्ञान से ज्यादा संस्कार और संस्कृति की आवश्यकता है : अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर महाराज

 

इंदौर ! ( देवपुरी वंदना ) अंतर्मुखी मुनि श्री 108 पूज्य सागर महाराज के धर्म प्रभावना रथ के चौथे पड़ाव का मंगल प्रवेश रविवार को श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, संविद नगर,कनाडिया रोड पर हुआ। मंदिर प्रांगण में महिलाओं ने मंगल कलश लेकर और समाज के श्रावकों ने मुनि श्री की जय कारों के साथ मंगलमय अगवानी की। परम पुज्य मुनि श्री को शास्त्र भेंट व पाद प्रक्षालन का परम सौभाग्य सरला जैन, सुशीला जैन, राजकुमारी जैन मदावत परिवार को प्राप्त हुआ।

इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री ने कहा कि गृहस्थ व्यक्ति जीवन में निश्चित रूप से बच्चों को पढ़ाने, अच्छा जॉब, अच्छे परिवार में विवाह हो जाए। वह अपना जीवन अच्छे से व्यतीत कर सके उसके लिए निरंतर पुरुषार्थ करते हैं। बच्चे के लिए सारे साधन जुटाते हैं, जिससे उनका संसार सुखी हो जाए यह जानते हुए कि संसार से मुझे एक दिन जाना है फिर भी वह अपने पैसों को अलग-अलग तरीके से सुरक्षित रखता है। जब गृहस्थ जीवन के लिए व्यक्ति भविष्य के लिए सोचता है तो धर्म के मामले में दूर दृष्टि क्यों नहीं होती। हम जिस धर्म में पैदा हुए है, उसके संस्कार और संस्कृति को कैसे सुरक्षित नहीं रख पाते। पूजा, अभिषेक, दर्शन निश्चित रूप से पुण्य का कारण है। बच्चे आपको जैसा करता देखेंगे, वैसा ही उनमें संस्कार आएंगे। फिर भी अगर वह मंदिर जाते हो या न जाते हो, वह उनके पुण्य पाप है लेकिन हम उन्हें संस्कार तो दे ही सकते हैं। हम क्या पहन रहे हैं, क्या खा रहे हैं, कहां जा रहे हैं, वही बच्चा आपसे सीखता है। अच्छे संस्कार उसको अच्छा इंसान बनाएगा। आप कितने ज्ञानी हो, आपका व्यवहार कैसा यह आपके चरित्र में झलकता है। आज बच्चों की आवश्यकता है अच्छे चरित्र की, अच्छे संस्कारों की। समाज में सभ्यता की जरूरत है, मानवता की जरूरत है। बिना संस्कार के पूजा पुण्य का कारण नहीं है। संस्कार अंदर से जोड़ता है, ज्ञान जोड़ने और तोड़ने दोनों का ही काम करता है। संस्कार सभ्यता देता है, ज्ञान नुकसान फायदा देता है। संस्कार अपने से जोड़े रखता है, ज्ञान हमें जोड़ भी सकता है और तोड़ भी सकता है। आज जो आत्महत्याएं हो रही हैं वह ज्ञान करवा रही है। संस्कार कभी आत्महत्या नहीं करवाता है। संस्कार के साथ ज्ञान केवलज्ञान करवाता है। संस्कारहीन ज्ञान नरक गति का बंध करवाता है। संस्कार हीन व्यक्ति जानवर बन सकता है और वहीं पर संस्कार के साथ रहकर जानवर भी इंसान बन सकता है। मुलाचार में कहां गया है पहले दीक्षा फिर शिक्षा। शिक्षा के बाद दीक्षा नहीं हो सकती है क्योंकि ज्ञान बीच में आ जाता है। ज्ञानी बनना जरूरी नहीं है संस्कारित बनना जरूरी है। ज्ञान पूज्यता को प्राप्त नहीं करवाता है जबकि संस्कार निश्चित रूप से पूज्यता को प्राप्त करवाता है। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों से पधारे समाज जन ने भेंट किया श्रीफल
कार्यक्रम में मुनि श्री को डी.के. जैन रिटायर्ड डी.एस.पी, मनोज जैन, आशा देवी, दिगंबर जैन फेडरेशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कमलेश कासलीवाल, फेडरेशन के राष्ट्रीय कार्य अध्यक्ष कीर्ति पांड्या, रत्नत्रय मंडल के साथीगण, पारस चैनल से तल्लीन बड़जात्या, भूपेंद्र जैन, दिवाकर जैन, पवन जैन, संभव जैन, आलोक जैन, पोरवाड़ समाज के अध्यक्ष नमीष जैन, संदीप जैन, छावनी मंदिर के अध्यक्ष देवेंद्र सेठी, श्रीफल जैन न्यूज़ संपादक रेखा जैन, कमलेश जैन, संजय पापड़ीवाल, टीना जैन, रितेश, हितेश, नयना, पिंकी कासलीवाल, समाज अध्यक्ष एल.सी. जैन, सचिव महावीर जैन, पवन मोदी, महावीर सेठ, सत्येंद्र जैन, आनंद पहाड़िया, राजेश जैन, लाल मंदिर कनाडिया रोड महिला मंडल द्वारा श्रीफल भेंट किया। कार्यक्रम का संचालन महावीर जैन ने किया।

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