10 अगस्त को इंदौर में हुए शंका समाधान प्रश्नोत्तरी आयोजन में आमंत्रित अखिल भारतीय श्वेतांबर जैन महिला संघ अनुपस्थित क्यों ..?
इंदौर ! (देवपुरी वंदना) जैन समाज के हृदय स्थल इंदौर शहर में तप, साधना, आराधना का महापर्व चातुर्मास काल चल रहा है, जहां विराजित आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी के शिष्य, शंका समाधान स्पेशलिस्ट मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी के 10 अगस्त के आयोजन में आमंत्रित अखिल भारतीय श्वेतांबर जैन महिला संघ के अनुपस्थित रहने का मुख्य कारण सामने आया है।
इसका कारण अखिल भारतीय जैन श्वेतांबर तपागच्छ महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूषण जैन द्वारा महिला संघ इंदौर की अध्यक्षा रेखा वीरेंद्र जैन से हुई बातचीत की ऑडियो क्लिपिंग में स्पष्ट रूप से सामने आया है। इस क्लिपिंग के सामने आने के बाद जैन समाज में हलचल मच गई है, और यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इस प्रकार का विवाद कैसे और क्यों पैदा हुआ।
ऑडियो क्लिपिंग में सुनाई दे रहे संवाद से ऐसा प्रतीत होता है कि समाज के भीतर आंतरिक मतभेद और विचारधाराओं की गहरी खाई है, जो इस विवाद की जड़ में है।
इसके अलावा, अखिल भारतीय जैन श्वेतांबर तपागच्छ महासंघ द्वारा जारी एक सर्कुलर ने भी इस मुद्दे को और भड़का दिया है। इस सर्कुलर में श्वेताम्बर महिलाओं से यह सवाल उठाया गया है कि जब उनके पास अपने शंका समाधान के लिए स्वयं के गुरु हैं, तो वे क्यों एक दिगंबर साधु के पास जाकर समाधान की तलाश कर रही हैं? यह प्रश्न न केवल महिलाओं की धार्मिक मान्यताओं पर सवाल उठाता है, बल्कि जैन समाज के भीतर बढ़ते मतभेदों की ओर भी इशारा करता है।
इस सर्कुलर और ऑडियो क्लिपिंग के सामने आने के बाद जैन समाज के लोग चिंतित हैं कि क्या यह विवाद उनके समाज की एकता और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। जहां एक ओर समाज के कुछ लोग इस विवाद को धर्म के प्रति समर्पण की कमी के रूप में देख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर, कुछ इसे विचारधाराओं की टकराहट के रूप में भी मान रहे हैं।
यह स्थिति जैन समाज के लिए गंभीर है, क्योंकि धार्मिक आयोजनों के दौरान ऐसे विवाद समाज के भीतर फूट और अशांति का कारण बन सकते हैं। सवाल यह है कि क्या सकल जैन समाज का नारा, जो एकता और समर्पण का प्रतीक है, इस परिस्थिति में बनाए रखा जा सकता है, या फिर यह केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा?
समाज को इस घटना से सीख लेकर अपने भीतर की एकता को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हो और जैन समाज अपनी धार्मिक परंपराओं और मूल्यों को सुरक्षित रख सके।