जैन समाज की लड़कियां भटक कर दुर्गति का पात्र क्यों बन रही है ?
सबसे ज्यादा शांत-मानवतावादी समाज जैन समाज है, सबसे ज्यादा महिलाओं को हर क्षेत्र में आजादी देने वाली समाज जैन समाज है, दहेज जैसी कुप्रथाएं लगभग है ही नहीं, भोजन की मर्यादा जैनों से ज्यादा कही है नही, सबसे ज्यादा साफ-सुथरी जैन समाज हैं, महिलाओं को सबसे अधिक सम्मान मिलता हैं, फिर क्या करेगी ऐसी कुल में जाकर जहाँ जिनेन्द्र देव की पूजा-भक्ति छूट जाए, जिनवाणी-गुरुवाणी सुनने को कभी मिल न पाए, साधु-संतों को आहार न दे पाए, उनके दर्शन न कर पाए, आत्मकल्याण-मुक्ति का मार्ग न हो, देव-शास्त्र-गुरु वीतरागी भगवान छूट जाए, रात्रि भोजन त्याग की बात न हो, पानी छानकर पीने का कोई अर्थ ही न हो, अमर्यादित भोजन हो, भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार न हो, जीवदया न हो, बेजुबानों के लिए संवेदनाएं न हो, मुक्ति मार्ग न हो..
जहां सदा के लिए किसी ईश्वर का दास बनना पड़े, स्वयं मुक्त होकर भगवान बनने का मार्ग न हो, जीव हिंसा में धर्म माना जाता हो..
सभी जैन युवक-युवतियों को अपने सौभाग्य को समझना चाहिए कि उन्हें ऐसा कुल मिला जहां नर से नारायण बनने का मार्ग बताया गया है, जहां ऐसा भोजन बताया गया जो कि मानवों का हो न कि दानवों का, हमें अपने कुल पर गर्व होना चाहिए और वीतरागियो के मार्ग से भटक कर दुर्गति का पात्र होने से बचना चाहिए..