19 वर्षों बाद थांदला गौरव आचार्य श्री 108 पुण्यसागरजी का जन्मभूमि पर 6 मई को भव्य मंगल प्रवेश
थांदला ! ( देवपुरी वंदना ) आचार्य श्री108 अजितसागरजी से सन 1987 में दीक्षित मुनि श्री108 पुण्यसागरजी गुरुदेव का 19 वर्षो के बाद आर्यिका श्री 105 सौरभमतिजी एवं 19 शिष्यों सहित भव्य मंगल प्रवेश होगा। धर्म धरा थांदला का गौरव ही है जब पुण्यसागरजी से दीक्षित दो भाई भी उनके साथ आ रहे है। उल्लेखनीय है कि थांदला मध्य प्रदेश से जहाँ पहले पुत्र संयम मार्ग पर आगे बढ़ते हुए प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवती आचार्य श्री 108 शांतिसागरजी महाराज की अक्षुण्ण मूल बाल ब्रह्मचारी पट्ट परंपरा के चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री 108 अजितसागरजी महाराज से बाल ब्रह्मचारी हसमुख जी मेहता थांदला दिगंबर जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर पूज्य मुनि श्री 108 पुण्यसागरजी महाराज हो जाते हैं। महज 22 वर्ष की युवा वय में दीक्षित पुण्यसागरजी दीक्षा गुरु की अनायास 3 वर्षो में समाधि होने के बाद पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के संघस्थ होकर धर्म प्रभावना कर रहे हैं। आपके वैराग्य से प्रेरित होकर गृहस्थ अवस्था के माता पिता भाईयो ने आपसे दीक्षा लेकर पिता मुनि श्री 108 परमेष्ठिसागरजी , माता आर्यिका105 श्री पुण्यमति,भाई मुनि श्री 108 महोत्सवसागर , मुनि श्री उपहारसागर बने। चाचा क्षुल्लक श्री 105पूर्णसागर एवम चाची आर्यिका 105 पूर्णिमामति होकर समाधिस्थ हो गई। वही भतीजे विकास भैय्या भी मुनि श्री के संघस्थ है। संघ अध्यक्ष अरुण कोठारी, कांतिलाल, हर्ष वर्धन देवेंद्र, शरद, राजेंद्र मेहता से प्राप्त जानकारी अनुसार नगर गौरव मुनि श्री पुण्यसागर जी ने अभी तक 45 से अधिक दीक्षाए दी। मुनिश्री का 19 वर्षो के बाद 19 दीक्षित शिष्यों के साथ प्रवेश हो रहा है तो मुनि श्री महोत्सवसागर, मुनि श्री उपहारसागर एवम क्षुल्लक श्री पूर्णसागर का दीक्षा के बाद प्रथम बार नगर प्रवेश करेंगें। दीक्षा गुरु की जन्म भूमि की रज स्पर्श के लिए शिष्य भी उत्साहित हैं। नगर की गौरव शाली संत परंपरा का जिक्र करते हुए विकास भैया ने बताया कि थांदला नगर से दिगंबर जैन समाज से मुनि श्री पुण्यसागर, मुनि श्री परमेष्ठिसागर, मुनि श्री महोत्सवसागर, मुनि श्री उपहारसागर, मुनि श्री शीतलसागर आर्यिका श्री प्रेरणामति, आर्यिका श्री पुण्यमति, आर्यिका श्री पूर्णिमामति, आर्यिका श्री विमलमति एवम क्षुल्लक श्री पुर्णसागर जी आदि रत्न निकलें हैं जो आत्म साधना करते हुए देशभर में भाईचारें का संदेश दे रहे है। वर्तमान में मेहता परिवार के सबसे बड़े भाई कांतिलालजी के पुत्र विकास भैया भी वर्षो से मुनिश्री के साथ संघस्थ होकर वैराग्य पथ पर अग्रसर हैं। नगर के जैन श्वेतांबर समाज से भी जैनाचार्य जवाहरलालजी महाराज व उमेशमुनिजी म.सा. आदि अनेक भव्य आत्माओं ने दीक्षा लेकर महावीरस्वामी के सिद्धांतों को प्रसारित किया हैं। बाल ब्रह्मचारिणी वीणा दीदी बिगुल अनुसार मुनिश्री ने 37 वर्ष के संयमी जीवन में दीक्षा गुरु आचार्य श्री अजितसागरजी के साथ 4 चातुर्मास दीक्षा गुरुदेव की समाधि के बाद आचार्य श्री108 वर्धमानसागरजी के साथ 10 वर्षायोग किए उसके बाद धर्म प्रभावना हेतु पृथक विहार करते हुए भारत देश के राजस्थान में 13, महाराष्ट्र में 7, कर्नाटक में 4, झारखंड में 6, बिहार में 2, असम में 4 व मध्य प्रदेश में 1 इस तरह कुल 37 वर्षायोग में सिद्ध क्षेत्र में 6,अतिशय क्षेत्र में 3, सहित अनेक नगरों में किए।
सल्लेखना समाधि आपने अपने साधनामय जीवन में दीक्षा गुरु श्री अजितसागरजी, मुनि श्री हितसागरजी सहित अनेक मुनियों, आर्यिका माताजी एवम 20 से अधिक शिष्यों सहित कुशल सल्लेखना समाधि 40 से अधिक करवाई है।
आपके ही सानिध्य में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा संघ सानिध्य में पाषाण को भगवान बनाने का अनुष्ठान थांदला दिगंबर जैन समाज के निवेदन पर मुनि श्री हितसागरजी, मुनि श्री पुण्यसागरजी, मुनि श्री चिन्मयसागरजी, आर्यिका श्री शीतलमती, आर्यिका श्री सौरभमति, आर्यिका श्री प्रेरणामति संघ सानिध्य में 9 मई से 14 मई 2005 में श्री आदिनाथ, श्री चन्द्रप्रभ तथा श्री शांतिनाथ भगवान सहित अनेक प्रतिमाओं का पंच कल्याणक संपन्न हुआ। आपने देश के अनेक राज्यों महानगरों में पंच कल्याणक करवाए।
आपके मुखारविंद से अभी तक 11 मुनि, 27 आर्यिका, 3 क्षुल्लक तथा 5 क्षुल्लिका इस तरह कुल 46 आत्माओं ने दीक्षा ग्रहण की। मुनिश्री के स्कूल के सहपाठी पारस, ऋषभ, भरत बैरागी, विजय, भरत भंडारी, नाथूलाल, अनूप आदि मित्र अपने साथी के मुनि अवस्था में नगर आगमन समाचार पाकर उत्साहित होकर गर्व के साथ स्कूल समय के संस्मरण साझा कर रहे हैं। स्कूल के तत्कालीन अध्यापक भी अपने लौकिक शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति से गौरवान्वित है।
~ जीवन लाल जैन ✍🏻 नागदा जंक्शन