जिनके पीछे चक्रवर्ती लगाने का कहा वह तीर्थंकर के पास जूते खोलते नजर आए
नई दिल्ली ! विगत दिवस जहां आप हम सब ने हमारे आराध्य भगवान श्री 1008 महावीर स्वामी का जन्मोत्सव पूरे देश ने हर्षोल्लाह के साथ अपने-अपने स्तर पर मनाया गया जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मीडिया और सोशल मीडिया रहा कोई देश की राजधानी नई दिल्ली में भी भारत मंड पम में भगवान महावीर स्वामी का जन्मोत्सव मनाया वही महावीर स्वामी का 2550 वा निर्माण महोत्सव वर्ष भी प्रारंभ किया गया साथ ही साथ हमारे राष्ट्रीय संत श्वेतपिच्छाचार्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज का 100 जन्म जयंती महोत्सव वर्ष मनाने का भी शुभारंभ हुआ जिसमें देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई । जहां श्रमण परंपरा के रक्षार्थ साधु संतों की गरिमामय आशीर्वाद एवं सानिध्य में ऐतिहासिक आयोजन हुआ । बस आयोजन समिति का ध्यान इस और नहीं जा पाया कि महोत्सव में मुख्य रूप से पधारे अतिथि माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी अपने चरण सुरक्षार्थ जूतो का उचित स्थान हमारे पूजनीय प्रतिमा जी के पास उतार कर उन्होंने अपना कार्य किया ? अगर वह दिमाग लगाकर चाहते तो उनकी कार में ही जूते खोलकर आ सकते थे क्योंकि जहां-जहां से आयोजन स्थल तक आए होंगे वहां लगभग कारपेट तो लगे ही होंगे अगर कारपेट भी नहीं होंगे तो साफ- सफाई तो पूरी ही होगी अब श्रावक श्राविकाओं को सोचना है कि आचार्य श्री 108 प्रज्ञ सागर जी ने उनके नाम के आगे चक्रवर्ती लगाने का जो ऐलान किया है वह कितना उचित है और यू भी देखा जाए तो क्या यह किस आधार पर निर्णय लिया गया क्या वह चक्रवर्ती पद जैसे शब्दों के लिए भी श्रेणी में बैठते हैं या नहीं अब जैन समाज को ही सोचा होगा कि नाम, पद, मंच, माला का उपयोग किसे व कब कहां किस समय करना चाहिए एक बंद कमरे में और एक सार्वजनिक रूप में क्या अंतर होता है इसकी भी जानकारी सभी को होना चाहिए ।