किस और जा रहा है…..? जैन समाज…..
छत्तीसगढ़ ! ( देवपुरी वंदना) ”तेरे पांच हुए कल्याण प्रभु एक कल्याण मेरा भी कर दे ”धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ प्रांत के दुर्ग शहर में प्राचीन पौराणिक परंपरा से हटकर नई सोच क्यों ?
जैसा कि विदित है पूज्य आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी ससंघ के सानिध्य में शुक्रवार दिनांक 2 दिसंबर 2022 से 8 दिसंबर 2022 तक नसिया जी दुर्ग में पाषाण से परमात्मा की ओर का सफर पंच कल्याणक महोत्सव हो रहा हैं जिसमे दुर्ग जैन समाज द्वारा चंद्रप्रभु भगवान की 7 मुखी प्रतिमा विराजमान की जा रही है जिसकी प्रतिष्ठा पूज्य आचार्य श्री के कर कमलों द्वारा होना है बहुत अच्छा है धर्म प्रभावना बढ रही है पंचकल्याणक होना भी अच्छा है परंतु हमारी पौराणिक परंपरा को क्यों बदला जा रहा है। आज तक ना तो भू- गर्भ से ऐसी प्रतिमा प्राप्त हुई है और ना हीं कहीं तीर्थ क्षेत्र पर देखने को मिलती है फिर क्यों दुर्ग जैन समाज अपनी संस्कार संस्कृति को बदलने में लगा है ?
इस 7 मुखी प्रतिमा की वही आकृति और स्वरूप है जैसा 5 , 7 अथवा 11 मुखी हनुमान जी , ब्रम्हा और शंकर जी की प्रतिमा का होता है
गिरनार जी में 3 मुखी दत्तात्रय की प्रतिमा का जैसा स्वरूप है वैसा ही इस प्रतिमा का स्वरूप नजर आ रहा है
इस प्रतिमा को देखने से हमे ऐसा लगता है जैसे हम हिंदू संप्रदाय के शंकर जी , हनुमान अथवा ब्रम्हा जी के दर्शन कर रहे है
इस समय अनदेखे कारण या आंखें मूंद लेने से भविष्य में कभी भी नसिया जी में हिंदुओ का कब्जा आसानी से हो सकता है वे इसे आसानी से हिंदू देवता सिद्ध कर देंगे ।
इस प्रतिमा का मुख्य दोष यह भी है कि यह प्रतिमा अंग – भंग प्रतिमा है अर्थात इसमें एक ही धड़ से सात सिर बनाए गए है और किसी भी सिर में कान नही है जैसा सिर रावण अर्थात दशानन का था दिगंबर संप्रदाय में जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा के अंग भंग नही हो सकती अर्थात प्रतिमा समचतुरस्थ संस्थान की होती है और यदि ऐसा नहीं हुआ तो इसे वास्तु शास्त्र में सबसे बड़ा दोष माना गया है जिससे पूरी समाज में अशुभ होना तय माना जाता है
7 मुखी जिनेन्द्र प्रतिमा का किसी भी शास्त्र में उल्लेख तक नही है
सिर्फ एक प्रतिमा लंदन में प्राप्त हुई है वह भी आज से लगभग 125 वर्ष पूर्व की है परंतु बाद के किसी भी दिगंबर जैन आचार्य ने उसे मान्यता नहीं दी क्योंकि शास्त्र में उसकी अनुमति नहीं है
समवशरण में भी जिनेन्द्र देव के चारो दिशाओं में चार मुख दिखते है परंतु वे सभी पूरे शरीर के साथ होते है* उनके अंग भंग नही होते और उनमें भी मूल शरीर एक ही होता है बाकी प्रभु के अतिशय से तीन दिशाओं में तीन और शरीर प्रकट रूप दिखते है परंतु 3 मुखी , 5 मुखी और 7 मुखी जैन प्रतिमा कही भी देखने और सुनने को नही मिली है ।
प्रतिष्ठा ग्रंथो के अनुसार किसी भी प्रतिमा में नाक ,कान मुख और चेहरे का आकार एक निश्चित अनुपात में होता है जबकि इस प्रतिमा में भगवान के कान ही नही है , सिर सात है और धड़ एक
यदि जिनेन्द्र देशना के सप्त भंग के प्रतीक के रूप में भी इसे स्वीकार कर लिया गया तो आने वाले समय में 8 कर्म को जीतने वाले के रूप में 8 सिर , 11 परिषय जीतने वाले के रूप में 11 सिर , 25 कसायो को जीतने के क्रम में 25 सिर और कर्म की 63 प्रकृति को जीतने से 63 सिर वाली प्रतिमा बनने लगेगी और भगवान का मूल रूप खो ही जायेगा।
इससे भविष्य में होने वाले भयंकर दुष्परिणाम यदि इसे नही रोका गया तो आने वाले समय में हिंदू देवी देवता और जैन प्रतिमाओं में भेद करना असम्भव हो जायेगा और कभी भी हिंदू समाज जैन मंदिरों में अपना कब्जा कर लेगी वैसे भी हिंदू समाज जैन समाज को अपनी ही शाखा मानती है वह आसानी से सभी जैन मंदिरों को अपने में मिला लेगी !
इस प्रतिमा को देखने से संदेह होता है कि जिनेन्द्र भगवान को केवल ज्ञान के बाद 7 सिर प्रकट हो जाते है क्यो कि जब कि ऐसा नहीं होता है।