अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद् द्वारा परमपूज्य आचार्य श्री108 विशुद्ध सागर जी महाराज एवं श्री दिगंबर जैन समाज दुर्ग से सार्वजनिक अपील

इंदौर ! परम पूज्य आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज एवं संघ के चरणों में सागर नमोस्तु !! नमोस्तु !!
श्री दिगंबर जैन समाज दुर्ग के सभी पदाधिकारियों एवं सदस्यों को जय जिनेन्द्र ।
जैसा कि ज्ञात हुआ है कि दुर्ग पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी महाराज की प्रेरणा से सप्तमुखी प्रतिमा स्थापित करने हेतु प्रतिष्ठित की जा रही है। इसे जिन प्रतिमा के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद् आपके इस कदम का समर्थन नहीं करती है तथा इसे आगम एवं परंपरा विरुद्ध मानती है। अतः आपसे निवेदन है की अविलंब इस प्रकार की सप्तमुखी प्रतिमा को विलुप्त करें ,नष्ट करें और जिन परंपरा के प्रति अपनी वचनबद्धता को स्वीकार करें ।
यहां उल्लेखनीय है कि लगभग 125 वर्ष पूर्व राजस्थान में इस प्रकार की एक प्रतिमा एक भट्टारक जी द्वारा बनवाई गई थी, जो लंदन म्यूजियम में रखी गई है। भारत में इस प्रकार की मूर्ति की पूजा -अर्चना का कोई इतिहास नहीं मिलता है और न ही इस प्रकार की परंपरा मूर्ति निर्माण की मिलती है। किन्हीं भट्ठारक के द्वारा मनमाने तरीके से वह प्रतिमा बनवाई गई थी जिसे जैनों ने कभी स्वीकार नही किया और उस पर कभी अपना दावा भी नहीं किया । लगभग 01 वर्ष पूर्व आपने ही सम्मेद शिखरजी में ऐसी प्रतिमा बनवाकर बिना समाज की स्वीकृति के स्थापित करवा दी किंतु जब विरोध हुआ तो आपने कहा कि यह प्रतिमा पूजा -अर्चना के लिए नहीं है, अपितु संग्रहालय में रखने के लिए है और उस प्रतिमा को पर्दा डालकर स्थाई रूप से बंद करवा दिया। वर्तमान में उसकी क्या स्थिति है,यह ज्ञात नहीं है। विद्वत्परिषद् इसके पूर्व भी इस प्रकार की प्रतिमा स्थापना का विरोध कर चुकी है ।आप पुनः सम्मेद शिखर जी की तरह वैसा ही प्रयास दुर्ग में कर रहे हैं जो आप जैसे आचार्य के लिए उचित नहीं है। आप अनेक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवा चुके हैं ,प्रतिष्ठा ग्रंथों के मूर्ति संबंधी नियमों को जानते होंगे ,फिर यह उपक्रम आपके द्वारा किया जा रहा है, यह आश्चर्य की बात है ।


आपने एक वीडियो में इस प्रतिमा का विरोध करने संबंधी प्रश्न के उत्तर में कहा कि मैं तो चाहता हूं सारे भारतवर्ष में इसका विरोध हो। मेरा प्रश्न है कि एक आचार्य इस प्रकार की बात कैसे कर सकते हैं ? वह तो विरोध से दूर रहकर आगम सम्मत चर्या करते हैं। अतः आपसे निवेदन है कि अविलंब इस सप्तमुखी प्रतिमा की प्रतिष्ठा को रोकें और समाज तथा धर्म की मान्य परंपरा का अनुसरण करें।
अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद् श्री सकल दिगंबर जैन समाज दुर्ग से भी निवेदन करती है कि वह इस प्रकार आगम विरुद्ध मूर्ति की प्रतिष्ठा ना करवाएं और ना ही उसे मंदिर में विराजमान करने के विषय में सोचें ।यदि आप उस मूर्ति की प्रतिष्ठा करते हैं ,करवाते हैं तो जैन धर्म एवं श्रुत के अवर्णवाद के दोषी माने जाएंगे। एक बार पुनः निवेदन- संपूर्ण भारतवर्ष के विद्वान् एवं साधु जन इस सप्तमुखी प्रतिमा की स्थापना का विरोध कर रहे हैं। उनका विरोध किसी व्यक्ति या साधु के प्रति नहीं अपितु आगम विरुद्ध क्रिया के विरुद्ध है ।अतः संपूर्ण विद्वत् समाज, साधु समाज की भावनाओं को समझते हुए ,सम्मान करते हुए अविलंब इस मूर्ति को हमेशा हमेशा के लिए विसर्जित करने का उपक्रम करवाएं । यही आज की और धर्म की मांग है। आशा है आप संपूर्ण भारत वर्ष की भावनाओं को समझेंगे और ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जो जैन ङधर्म एवं परंपरा के विरुद्ध हो। यदि आप इस विषय पर विद्वानों से संवाद करना चाहें तो हम इसके लिए तैयार हैं ।
-: अपीलकर्ता :-
प्रोफेसर सुदर्शन लाल जैन, भोपाल पंडित अभय कुमार जैन ,बीना
डॉ. जयकुमार जैन -संरक्षक
प्रोफेसर अशोक कुमार जैन -अध्यक्ष डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन भारती- उपाध्यक्ष
प्रोफेसर विजय कुमार जैन- महामंत्री पंडित महेन्द्र कुमार जैन -कोषाध्यक्ष पंडित संजीव कुमार जैन -संयुक्त मंत्री डॉ. शैलेश कुमार जैन -‌ उपमंत्री
डॉ. सुमत कुमार जैन -प्रकाशन मंत्री समस्त कार्यकारिणी समिति एवं साधारण सभा सदस्यगण
अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन विद्वत्परिषद्, रजिस्टर्ड

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